हैदराबाद। कहते हैं, जिंदगी चलती रहती है, चाहे कुछ भी हो। लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? जब दिल में किसी अपने की जगह खाली हो जाती है, तो वह खालीपन सब कुछ निगलने लगता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा है।
आज, जब भी अपनी सांसों को महसूस करती हूं, तो सीने में एक ऐसा दर्द उठता है, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। यह दर्द किसी शारीरिक तकलीफ का नहीं है, बल्कि यह मेरे टूटे हुए दिल की चीखें हैं। मेरे पति, मेरे जीवनसाथी, जो मेरे जीवन का हिस्सा थे, अब मेरे साथ नहीं हैं। उनके बिना जीना ऐसा लगता है जैसे हर दिन मर-मरकर जी रही हूं।
मैं हर पल उन्हें याद करती हूं। उनकी हंसी, उनका साथ, उनका स्पर्श—सब कुछ मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है। ऐसा लगता है जैसे समय थम गया है, लेकिन दुनिया अपनी रफ्तार से चलती जा रही है। मैं पीछे छूट गई हूं, बस उनकी यादों के साथ।
रोना अब मेरा रोज़ का साथी बन गया है। मैं सोचती हूं, क्यों मेरे साथ ऐसा हुआ? क्यों उन्हें मुझसे छीन लिया गया? क्या मैंने उनसे सच्चा प्यार करने की कीमत चुकाई है? या यह नियति का खेल है, जिसे समझ पाना मेरे बस की बात नहीं।
मैंने कोशिश की है खुद को समझाने की, लेकिन हर कोशिश नाकाम रही। जब मैं उनकी तस्वीर देखती हूं, तो मन में यह सवाल उठता है—क्या मैं उनके बिना जीने लायक हूं? क्या मैं उस खुशी को फिर से महसूस कर सकती हूं, जो उनके साथ थी?
इस दर्द के बीच, एक उम्मीद की किरण है। शायद समय मुझे इससे उबरने का रास्ता दिखाएगा। शायद उनकी यादें ही मुझे ताकत देंगी। शायद उनके प्यार को मैं अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी ताकत बना सकूं।
यह आलेख मेरे उस दर्द का प्रतिबिंब है, जो मेरे अंदर है। मैं चाहती हूं कि मेरे शब्द उन लोगों तक पहुंचें, जो इसी दर्द से गुजर रहे हैं। यह जानना जरूरी है कि आप अकेले नहीं हैं। दर्द साझा करने से कम नहीं होता, लेकिन इसे व्यक्त करना आपको थोड़ा हल्का जरूर कर सकता है।
आखिर में, मैं बस यही कहना चाहती हूं—अपने दर्द को मत छुपाइए। उसे बाहर निकालिए, क्योंकि यही वह पहला कदम है, जो आपको फिर से जीने की राह दिखाएगा।
सीने का दर्द, अनकही बातें
धड़कन तो चलती है, पर जिंदगी ठहर गई,
तेरे बिना ये दुनिया वीरान सी हो गई।
हर सांस में तेरा नाम पुकारती हूं,
आंसुओं के सागर में खुद को डुबोती हूं।
तेरी हंसी की गूंज अब खामोशी में खो गई,
मेरी खुशियों की हर राह अब मौन हो गई।
हर रात तुझसे मिलने का ख्वाब सजाती हूं,
सुबह होते ही टूटकर बिखर जाती हूं।
जीने की वजह अब चाहकर भी तुझको नहीं बना पाती,
तेरे बिना हर पल जिन्दा अब रह भी नहीं पाती ।
हिंदी साहित्य जगत की रचनाकार
कवयित्री : श्रीमती बसंती
प्रतिष्ठित लेखिका, सामाजिक चिंतक* व अध्यापिका व विभागाध्यक्ष