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गर्भ


गर्भ में पड़ा एक बीज
जैसे धरती के गर्भ में
बोया जाता है अन्न
दबाया जाता है उसे
मिट्टी के भीतर
उसे सींचना और सहेजना
होता है बाहर से
क्योंकि हम कहाँ
इतने शक्तिशाली कि
माँ और धरा के कोख में
झांक कर देख सकें
कि वे दोनों
कैसे परवरिश करते हैं
अपने संतानों की
मिट्टी देती है संकेत
कुछ दिनों में ही
अपने वक्ष से कोंपलों
को बाहर निकाल कर
पर सुरक्षित रखती है
उसका जड़ अपने
कोख के अंदर
माँ लेती है वक़्त
बताने में कि नया जीव
धरती पर आने वाला है
क्योंकि उसमें होती है
धरा से अधिक सहनशीलता
सब कुछ समेटे
रहती है अपने भीतर
करती है पालन-पोषण
एक बीज से
जीते-जागते इंसान का
सृजन कर जाती है वह…
और लौटाती है धरा को
एक जिम्मेदार शख्शियत!

नन्दनी प्रनय
रांची, झारखंड

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