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भगवान बिरसा मुंडा ने पकड़वाने वाले को भी माफ कर दिया था : सुनीत

भगवान बिरसा मुंडा ने 1886 से 1890 तक अपनी पढ़ाई के लिए चाईबासा में प्रवास किया जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण समय था । चाईबासा छोड़ने के तुरंत बाद उन्होंने मिशन की सदस्यता छोड़ दी और ईसाई पंथ को छोड़ अपनी मूल पारंपरिक आदिवासी मुंडा धार्मिक प्रणाली में वापस लौट गए। “अबूआ राज एते जाना, महारानी राज टुडू जाना ” (यानी अब हमारा राज शुरू हो गया है और महारानी का राज ख़त्म हो गया है) का नारा भी उन्होंने बुलंद किया और लोगों में आत्मविश्वास भरने का काम किया। बिरसा मुंडा ने लोगों को कहा कि वो सरकार को कोई टैक्स न दें, 19 वीं सदी के अंत में अंग्रेज़ों की भूमि नीति ने परंपरागत आदिवासी भूमि व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया था। उन्होंने कई जगहों पर ब्रिटिश झंडे यूनियन जैक को उतारकर उसकी जगह सफ़ेद झंडा लगाया जो मुंडा राज का प्रतीक था, अंग्रेज़ सरकार ने उस समय बिरसा मुंडा जी पर 500 रुपए का इनाम रखा था जो उस ज़माने में बड़ी राशि हुआ करती थी ।भगवान बिरसा के पकड़े जाने का विवरण सिंहभूम के कमिश्नर ने बंगाल के मुख्य सचिव को भेजा था जिसमे उन्होंने ने बताया कि 500 रुपए का इनाम घोषित होने के बाद पास के गाँव मानमारू और जरीकल (चक्रधरपुर क्षेत्र) के सात लोग बिरसा मुंडा की तलाश में जुट गए । कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, “तीन फ़रवरी को इन लोगों ने सेंतरा के पश्चिम के जंगलों में दूर से धुआँ उठते हुए देखा. जब वो पास गए तो उन्होंने देखा कि बिरसा वहाँ अपनी दो तलवारों और पत्नि के साथ बैठे हुए थे, थोड़ी देर बाद जब बिरसा सो गए तो इन लोगों ने उसी हालत में उनको पकड़ लिया. उन्हें बंदगांव में कैंप कर रहे डिप्टी कमिश्नर के पास लाया गया” बिरसा को पकड़ने वाले लोगों को 500 रुपए नक़द इनाम के तौर पर दिए गए । कमिश्नर ने आदेश दिया कि बिरसा को चाईबासा न ले जाकर राँची ले जाया जाए और तभी आक्रोशित लोगों ने मुखबिरी करने वालों को जान से मारने का फैसला किया जिसपर भगवान बिरसा मुंडा ने शांति का संदेश देते हुए कहा कि इनलोगो को कोई कुछ ना करे और अपने व्यवहार से भी कोई दुख न पहुंचाए । 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा जी ने अंतिम सांस लिया । 1940 में रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन जिसमें गांधी जी ने भी भाग लिया था वहां मुख्य द्वार का नाम बिरसा मुंडा गेट रखा गया था । झारखंड राज्य की स्थापना भी उनके जन्मतिथि के दिन किया गया। इस विचार के साथ रहना आवश्यक होगा कि जब सभी महान व्यक्तित्व ने हमें शांति, अहिंसा और प्यार का मार्ग दिखाया है तो आज पूरे देश में ये आक्रोश क्यों ?

जय जगत..!

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