गौतम बुद्ध को जब पहली दफा ज्ञान हुआ तो…
बुद्ध को जब पहली दफा ज्ञान हुआ लोगों ने पूछा कि आपको क्या मिला? तो बुद्ध हंसे और उन्होंने कहा: मिला कुछ भी नहीं, हां, खोया जरूर कुछ। अपने को खोया। और मिला? मिला कुछ भी नहीं। लोगों ने कहा: उलझाइए मत। सीधी—साफ बात करिए। आप सत्य को उपलब्ध हो गए हैं, यही सोच कर तो हम आपकी पूजा—प्रार्थना को आए और आप कहते हैं: कुछ मिला नहीं! बुद्ध ने कहा: फिर दोहराता हूं कि कुछ नहीं मिला। जो मिला ही हुआ था, उसको जाना। उसको मिलना कैसे कहें? वह मेरे भीतर मौजूद ही था, सिर्फ मुझे पता नहीं था; होश नहीं था, सुरति नहीं थी, स्मृति नहीं थी।
जैसे खजाना गड़ा हो घर में और तुम भूल गए कि कहां गड़ाया है। और फिर एक दिन तुम्हें याद आ गई या नक्शा हाथ लग गया और तुमने खजाना खोद लिया। तो कुछ पाया? पाए हुए को ही पाया तो इसको पाना क्या कहना!
बुद्ध ठीक कहते हैं कि मैंने खोया कुछ। खोया अपना अहंकार, खोया अपना अज्ञान, खोई अपनी जड़, अंधी आदतें, खोया अपना चित्त, मन, मन का व्यापार। पाया? पाई समाधि, जो कि सदा से ही मेरे भीतर मौजूद थी। जिस दिन भी विचारों की भीड़ को विदा कर देता, उसी दिन मिली थी।
आलेख : अजय कुमार सिंह