हमारे राजनेता परिवार की पुश्तैनी संपत्ति में बेटियों को हिस्सा भले ही न दे, राजनीतिक संपत्ति में वे बेटियों के साथ बेईमानी नहीं करते हैं: लक्ष्मी सिन्हा
बिहार पटना: समाजसेवीका श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने एक कार्यक्रम के संबोधन में कहां की पहले राजनेताओं के उलटे-पुलटे और उत्तेजना पैदा करने वाले बयानों को पढ़- सुनकर आम लोगों को लगता था कि यह सभी उनके हित के लिए हो रहा है। लेकिन अब सबको पता चल गया है कि उनकी आधारभूत आवश्यकताओं पर पर्दा डालने और उनके ध्यान हटाने के लिए हमारे राजनेता ऐसा करतब करते-करते हैं। ये कभी सदन में तो कभी सड़क पर उत्तेजित करने वाले भाषण देते हैं। बयान देते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बहस करते हैं। ताजा उदाहरण एक कविता पर छिड़ा हुआ विवाद है। इस पर कई दलों के नेता कागजी तलवार लेकर हवा में भज रहे हैं। साहित्य से जुड़े लोग भी आश्चार्ज में हैं कि भले चंगे घर बैठे इन नेताओं को कविता से इतना जबरदस्त लगाव कैसे हो गया है। राजनेताओं में भी एक से एक कवि हुए हैं। लेकिन, अब की पीढ़ी में तो यह दुर्लभ है। अच्छी बात यह है कि बिना पढ़े-लिखे लोग भी इतनी बात समझ ही गए हैं कि यह वोट के लिए किया जा रहा है। मतदाताओं की पीढ़ी बदली है। आगे श्रीमती सिन्हा ने कहा कि साथ में जाती आधारित राजनीतिक के बारे में समझ भी विकसित हुई है। समझा यही की जाति की राजनीति का लाभ प्रथमत: और अंततः उसे जाति के नेता के परिवार को ही मिलती है। विधानसभा या लोकसभा की सीट भी जाति के दूसरे नेताओं को तभी दी जाती है, जब परिवार के सभी सदस्यों का कोटा पूरा हो जाता है। ऐसी समझ बनने का कारण भी है, क्योंकि राज्य में ही ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं। हमारे राजनेता परिवार की पुश्तैनी संपत्ति में बेटियों को हिस्सा भले ही न दें, राजनीतिक संपत्ति में वे बेटियों के साथ बेईमानी नहीं करते हैं। जरूरत इस बात की है कि जनता को लाभ पहुंचाने वाले मुद्दों के बदले उत्तेजना पैदा करने वाले नेताओं के बारे में आम लोग थोड़ा गहराई से विवेचन करें। ये नेता उस पार्टी में भी हैं, जिसके आप समर्थक हैं। उनके भी हैं, जिनके आप विरोधी हैं। यह आपकी जाति के हैं और धर्म के भी हैं।