सूर्य मंदिर परिसर में सात दिवसीय दिव्य दार्शनिक प्रवचन एवं संकीर्तन का हुआ शुभारंभ
पशुपतिनाथ जी नेपाल से पधारे पूज्य स्वामी श्री रामदासजी ने किया प्रवचन
जमशेदपुर। सिदगोड़ा स्थित सूर्य मंदिर में घनश्याम कृपालु धाम वृंदावन एवं जमशेदपुर सूर्य मंदिर समिति के संयुक्त सौजन्य से सात दिवसीय दिव्य दार्शनिक प्रवचन एवं संकीर्तन का शुभारंभ सोमवार को हुआ। सूर्य मंदिर के शंख मैदान में पशुपतिनाथ जी नेपाल से आए हुए पूज्य स्वामी श्री रामदासजी ने अनंत सुख कहाँ है विषय पर मार्गदर्शन किया। उन्होंने वेद एवं शास्त्रों से प्रमाण देते हुए यह कहा कि प्रत्येक जीव अनेक प्रकार से दुःखी है और वह दुःख नहीं चाहता है बल्कि आनंद चाहता है। हम सब अनंत मात्रा का प्रतिक्षण बढ़ने वाला और सदा को रहने वाला आनंद चाहते हैं। आनंद के अलावा अगर कोई कुछ और वस्तु चाहता हुआ दिखाई पड़ता है तो यस वस्तुको भी वह आनंद के निमित्त ही चाहता है।
स्वामी जी ने आगे कहा कि ऐसा नहीं कि हम केवल इसी जन्म में आनंद चाहते हैं। क्योंकि हम अनादि हैं और निरंतर आनंद ही चाहते हैं, तो जिस प्रकार इस जीवन में हम हमेशा आनंद के निमित्त ही प्रयत्नशील हैं। उसी प्रकार इसके पूर्व अनंत जन्मों में भी हमने आनंद को ही चाहा, आनंद को ही ढूंढा। अनादि काल से आज तक आनंद को ढूंढने पर भी हमको वास्तविक सुख यनी अनंत मात्रा का प्रतिक्षण बढ़ने वाला और सदा को रहने वाला आनंद नहीं मिला।
प्रवचन में उपस्थित भक्तजनों को भी यह एहसास हो गया कि हम गलत जगह आनंद को ढूंढ रहे हैं। हमेशा से हमको यही लगा की अब ये हो जाए तो सुख मिलेगा, अब यह हो जाए तो सुख मिलेगा। लेकिन जैसे मरुभूमि में हरिण को सरोवर दिखाई तो पड़ता है लेकिन ज्यों ज्यों वह सरोवर की ओर दौड़ता है त्यों त्यों सरोवर भी उतना ही दूर होता जाता है। हमारे जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। हम आनंद के पीछे, सुख के पीछे भागते हैं यह सोच के की यह काम हो जाए तो सुख मिलेगा, लेकिन उसके बाद भी हमको सुख नहीं मिलता है।
स्वामी जी ने तर्क एवं दृष्टान्त के द्वारा समझाया कि आज तक जितने भी सुख का हमको अनुभव हुआ है वह सीमित सुख है, प्रतिक्षण घटनेवाला सुख है और समाप्त होने वाला सुख है। हम तो अनंत मात्रा का प्रतिक्षण बढ़ने वाला और सदा को रहने वाला आनंद चाहते हैं तो हमको विपरित स्वभाव वाला सुख मिला और हम बार बार दुःखी हो जाते हैं।
तो वास्तविक सुख कहाँ है? अनंत मात्रा का प्रतिक्षण बढ़ने वाला और सदा को रहने वाला आनंद कहाँ है? यद्यपि अनेक दार्शनिकों ने इस प्रश्न के ऊपर अपना मत व्यक्त किया है, लेकिन उन सब में कमियां हैं। हमारे सनातन धर्म में वेदों को अंतिम प्रमाण कहा गया है। वेद सर्वमान्य सर्वोच्च ग्रन्थ है। इसीलिए स्वामी जी ने कहा कि इसके लिए हमको वेदों के पास, शास्त्रों के पास जाना होगा। वेद-शास्त्र कहते हैं की भगवान ही आनंद हैं। चाहे हम उनको भगवान कहें, ब्रह्म कहें, राम कहें, कृष्ण कहें या केवल आनंद कहें एक ही बात है। तो क्योंकि भगवान ही आनंद हैं इसलिए भगवान को प्राप्त करके ही हम सुखी हो सकते हैं, ऐसा वेदों का कहना है।
अब मूल प्रश्न आता है कि भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है? तो शास्त्र कहते हैं कि भगवान तो पहले से ही प्राप्त हैं। सर्वव्यापी हैं। इसीलिए उनको मात्र जानने से ही उनका लाभ मिल जाएगा। इसलिए शास्त्र कहते हैं कि भगवान को जानो। जो भगवान को जान लेता है, वह सुखी होता है। वह हमेशा के लिए दुख से परे हो जाता है। इसलिए भगवान को जानना होगा।
कल मंगलवार के प्रवचन में स्वामी श्री रामदासजी भगवान को कैसे जाना जा सकता है? शास्त्रों से प्रमाण देते हुये इसके बारे में समझायेंगे। प्रवचन प्रतिदिन संध्याकाल में 5:30 बजे से प्रारंभ होता है।