राजेश कुमार झा
नई दिल्ली। दिल्ली सरकार और केंद्र का झगड़ा पुराना है लेकिन नए अध्यादेश के बाद यह और भी बढ़ गया है। इस झगड़े में अब विपक्षी दलों की भी एंट्री हो गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी दलों से केंद्र के नए अध्यादेश के खिलाफ समर्थन मांगा है। केजरीवाल ने कहा कि विपक्ष को एकजुट होकर केंद्र की बीजेपी सरकार के इस तानाशाही अध्यादेश को संसद में हराना होगा। यदि राज्यसभा में यह बिल पास नहीं हुआ तो 2024 का सेमीफाइनल होगा और पूरे देश में संदेश चला जाएगा कि 2024 में बीजेपी की सरकार जा रही है। केजरीवाल इस मुद्दे पर दूसरे दलों के नेताओं का समर्थन पाने के लिए उनसे मुलाकात भी करेंगे। वहीं दूसरी ओर बीजेपी का मानना है कि इस विधेयक को मंजूरी मिल जाएगी। संख्या के हिसाब से देखा जाए तो एनडीए के पास लोकसभा में बहुमत है लेकिन राज्यसभा में बहुमत से सीटें कुछ कम हैं। ऐसे में उसे भी कुछ दलों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी।लोकसभा और राज्यसभा में क्या है सीटों का गणित
जहां तक लोकसभा की बात है NDA के पास पूर्ण बहुमत है लेकिन राज्यसभा में सदस्यों की संख्या 110 है। मनोनीत सदस्यों की 2 सीट खाली है और इसे भरा भी जा सकता है। फिर यह 238 की प्रभावी संख्या के हिसाब से सदन में बहुमत से आठ कम है। हालांकि बीजेपी को वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी के समर्थन से घाटा पूरा करने की उम्मीद है। आंध्र के सीएम वाईएस जगन मोहन रेड्डी और नवीन पटनायक से समर्थन की उम्मीद है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों ने भी इनसे बीजेपी के खिलाफ खड़े होने की अपील की है। BJP को भरोसा है कि दिल्ली सेवाओं पर अध्यादेश संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाएगा क्योंकि उसके पास पर्याप्त संख्या है। बीजेपी ने अध्यादेश को दिल्ली के लोगों के हित में बताया है।कांग्रेस का स्टैंड और नीतीश की उम्मीद, क्या होगा आगे
विधेयक पर वोटिंग के लिए कांग्रेस को भी अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा क्योंकि आम आदमी पार्टी को लेकर उसका स्टैंड क्लियर नहीं है। केजरीवाल की पार्टी से पूरी तरह कांग्रेस दूरी बनाएगी या उसका साथ देगी स्पष्ट नहीं है। विपक्षी दलों को एकजुटज करने में लगे नीतीश कुमार ने रविवार को ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की और उनका साथ देने की बात कही। नवीन पटनायक जिनसे हाल ही में नीतीश कुमार ने मुलाकात की है। नवीन पटनायक और पीएम मोदी के बीच अब तक किसी मुद्दे पर खटास दिखी नहीं है और उनकी पार्टी का साथ कई बार एनडीए को मिला है। वहीं विपक्ष ने अभी तक पटनायक को नहीं छोड़ा है और उन्हें भरोसा है कि नवीन पटनायक का साथ मिलेगा। उड़ीसा में बीजेपी मुख्य विपक्षी दल है और चुनाव से पहले नवीन पटनायक के लिए चुनौती भी। विपक्षी दलों को इससे भरोसा है कि नवीन पटनायक का साथ मिलेगा।
NCT एक्ट और अब सरकार का नया अध्यादेश
दिल्ली और केंद्र का झगड़ा पुराना है और इसी झगड़े को लेकर केंद्र सरकार की ओर से 2021 में एनसीटी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल लाया गया और यह संसद में पास भी हो गया। इस एक्ट के तहत यह था कि दिल्ली सरकार को अपने हर बड़े फैसले पर दिल्ली के उपराज्यपाल की राय राय लेनी पड़ेगी।
दिल्ली विधानसभा के बनाए किसी भी कानून में सरकार से मतलब एलजी से होगा। एलजी को सभी निर्णयों, प्रस्तावों और एजेंडा की जानकारी देनी थी। दिल्ली -एलजी के बीच झगड़े और अधिकारों की लड़ाई का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था जहां इसी महीने 11 मई को फैसला दिल्ली सरकार के हक में आया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला दिया कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे विषयों को छोड़कर अन्य सेवाओं पर दिल्ली सरकार के पास विधायी तथा प्रशासकीय नियंत्रण है।
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि नौकरशाहों पर एक निर्वाचित सरकार का नियंत्रण होना चाहिए। दिल्ली सरकार के कंट्रोल में एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज होंगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने पिछले शुक्रवार को अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) जारी कर अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए सिविस सर्विसेज अथॉरिटी बनाने का फैसला किया और कहा है कि अथॉरिटी को ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए एलजी को सिफारिश करनी होगी। अध्यादेश में कहा गया कि दिल्ली में एलजी अन्य राज्यपाल की तरह नहीं हैं, बल्कि वह प्रशासक हैं। केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली(संशोधन) अध्यादेश,2023 लाया गया है।