दो हजार रुपया के नोट को चलन से बाहर करने के फैसले से यदि किसी को परेशानी होने वाली है तो काला धन छिपाने वालों को: लक्ष्मी सिन्हा
बिहार पटना । राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि रिजर्व बैंक की ओर से दो हजार रुपए के नोट वापस लेने का फैसला प्रत्याशित ही है, क्योंकि एक तो उनके चलन के समय ही कई तरह के प्रश्न उपजे थे और दूसरे, उनका प्रचलन लगातार कम होता जा रहा था। इन सबके अतिरिक्त बार-बार यह भी कहा जा रहा था कि दो हजार के नोट काले धन छिपाने का जरिया बने हुए हैं। इस धारणा को पूरी तौर पर निराधार नहीं कहा जा सकता। कायदे से दो हजार रुपए के नोट चलन में लाना ही नहीं चाहिए था। लेकिन नोटबंदी के बाद बाजार में यथाशीघ्र मुद्रा का प्रवाह करना भी आवश्यक था। इसमें संदेह नहीं की इसमें दो हजार रुपए के नोट सहायक बने। एक तरह से वे मजबूरी में लाए गए थे। यह अच्छा हुआ की इस मजबूरी से मुक्त होने का फैसला किया गया। ऐसे किसी फैसले के आसार तभी उभर आए थे, जब यह खबर आई थी कि दो हजार के नोट की छपाई बंद कर दी गई है। इसके बाद तो संसद में भी दो हजार के नोट बंद करने की मांग उठी थी। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि हालांकि कई विपक्षी दलों को रिजर्व बैंक का फैसला रास नहीं आया, लेकिन उनकी ओर से यह जो आशंका व्यक्त की जा रही है की इससे लोगों को परेशानी हो सकती है या फिर अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, वह निराधार ही अधिक है। दो हजार रुपए के नोट को चलन से बाहर करने के फैसले से यदि किसी को परेशानी होने वाली है तो काला धन छिपाने वालों को। ऐसे लोगों को परेशान होना ही चाहिए। दो हजार रुपए के नोटों को वापस लेने के रिजर्व बैंक के फैसले के बाद सरकार इस वर्ष सितंबर के बाद इन नोटों के भविष्य को लेकर फैसला करेगी। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने आगे कहा कि भविष्य में किसी तरह के संशय के लिए कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए। जैसे नोटबंदी जैसे फैसले बार-बार नहीं लिए जा सकते, वैसे ही किसी राशि के नोट को चलन से बाहर करने का फैसला भी। बार-बार लिए जाने वाले ऐसे फैसले मुद्रा के प्रति लोगों के भरोसे को कम करते हैं। अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए यह भी आवश्यक होता है कि मुद्रा के भविष्य को लेकर किसी तरह की दुविधा न रहे।