हम भारत के लोगों ने ही सबसे पहले बताया कि धरती हमारी माता है। धरती है, तो हम हैं : लक्ष्मी सिन्हा
बिहार पटना । राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी सह प्रदेश संगठन सचिव श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा बातचीत में बताया कि पृथ्वी दुनिया के लिए प्लैनेट है मगर हम भारतवासियों के लिए प्रातः स्मरणीय माता, जिस पर पैर रखने से पहले भी हम मांगते हैं कृतज्ञतापूर्वक क्षमा। पूरे विश्व को हम भारत के लोगों ने ही सबसे पहले बताया कि धरती हमारी माता है। धरती है, तो हम हैं। वेद, उपनिषदों से लेकर पौराणिक आख्यानों में ऋषियों ने भर्ती की वंदना गाई। अथर्ववेद में वह प्रसिद्ध प्रसिद्ध पृथ्वी सूक्त मिलता है, जिसमें भूमि की स्तुति के रूप में उन सभी चीजों का उल्लेख है, जो हमें एक करती है। इस सूक्त में माता भूमि:पुत्रोऽहं पृथिव्या के जरिए पहली बार मनुष्य ने अपना पहचान पत्र प्रस्तुत किया। धरती मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं, यह पहचान पत्र किसी राजकीय व्यवस्था के तहत जारी नहीं हुआ, अपितु ऋषि के अंतरंग से उछलकर आया था। कुछ पहचानपत्र को संस्कृतिक, धार्मिक और दर्शनिक मान्यता मिली। आगे चलकर वसुधैव कुटुंबकम् का एक नया उदात महावाक्य संस्कृति के अध्यायों में तैरता हुआ समूचे आर्यावर्त के साथ विश्व के सामने जा खड़ा हुआ। भारतीय दृष्टि थी, एक महास्वप्न, जिसका विस्तार हमारे सामने हैं। इहलोक, परलोक और इन सबसे परे भी यदि कहीं कुछ है, तो उसे देखने वाली आंखें पृथ्वी की ही है। धरती जैसी आंखें न तो आकाश के पास है,न सूरज के पास, न चंद्रमा के पास। धरती ही है जिसकी दृष्टि बस जगह पहुंचती है। वह सूरज के पीछे छिपे हुए असंख्य सूयों को देख आई है। धरती जब निकलती है तब उसे इंद्र, विष्णु, मित्रावरुण, रुद्र मरुत सहित असंख्य देवताओं के साथ अपने चारों ओर फैले हुए ऊंचे-ऊंचे पर्वत, समुद्र, वनस्पतियों और औषधियों से लगी हुई अरण्यावलियां, पशु-पक्षी, अद्भुत वास्तुशिल्प, देव-प्रतिमाएं, विज्ञान के चमत्कार, अध्यात्म की ऊंचाइयां, लोककलाएं, वीरगाथाएं, गीत-संगीत, धर्म-दर्शन माता-पिता -भाई बहन और मित्रों के रिश्ते,दुख-सुख,आशा-निराशा के बीच उत्कट जिजीविषा, भिन्न-भिन्न विश्वास और आस्थाओं के दर्शन होते हैं। इतना बस एक साथ किसी भी ग्रह-उपग्रह पर संभव नहीं है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि यह धरती समूचे ब्राह्मंड का तीर्थ स्थल है। यहां हर पल मेला, हर पल आनंद। दुख के बड़े से बड़े पहाड़ को मसल कर रख देने की अद्भुत क्षमता धरती-पुत्रों में है। इस धरती का छोटा से छोटा स्थान भी दुर्लभ है, दुनिया का व्यर्थ से व्यर्थ जीवन भी दुर्लभ है। यह धरती मौज-मस्ती के लिए, नाच-गाने के लिए है, परंतु ज्ञान -भक्ति -कर्म के विस्तार के लिए भी है। अनादिकाल से जीवनमूल्यों के पवित्र स्मारक इस धरती पर दीपस्तंभ बनकर खड़े हैं। इसके उजाले में मनुष्य अपना रास्ता खोजता है, लक्ष्य को चुमता है, आनंद के असंख्य महासागर और स्वाभिमान के उच्चतम शिखर खड़े करता है और चुपचाप धरती के आंचल में सिमट जाता है। हमने एक बार नहीं, अनेक बार सिद्ध किया है कि हम इस धरती के जाये हैं। हमने मिट्टी की सौगंध खाई और कई बार मिट्टी की खातिर मिट्टी में मिल जाना पसंद किया। यूं तो धरती पंच महाभूतों में से एक है, परंतु यही न हो, दो आकाश का कौन क्या करेगा ? हवा बहकर भी क्या करेगी ? पानी का क्या करेंगे ? और आग किसके लिए जलेगी ? हमने धरती को सजाया है, इसका दिल से श्रृंगार किया है। सदियों पहले धरती उजाड़ थी, हमने इसे सुंदर और भव्य उपवन में बदल डाला। इस पर खेती की, अन्य उपजाया। हमने श्रम किया, रास्ते बनाए। सभ्यता की इबारत लिखें। गवेंकि्त नहीं है, लेकिन हम धरती की जाति के हैं। यही कर्म तो हमारा स्वभाव था। हमारी प्रकृति थी। इसलिए यही तो हमें करना चाहिए था। अंतरिक्ष में घटने वाली पल-पल की घटनाओं का हिसाब धरती के पास है। धरती ने अपनी आयु के साथ सूरज की ही नहीं, संपूर्ण ब्रह्मांड की आयु का पता लगाया है। अपने गर्भ में पाल रही अनमोल धातु और पत्थरों से वह अनजान नहीं है।वह उन्हें तराशती है और अपनी संतानों को शानो -शौकत बताती रहती है। धरती का शस्य -श्यामला और सुजलां -सुफलां होना उसके मातृत्व का श्रृंगार है। बंकिम का वंदे मातरम सच्चे अर्थों में धरती का ही गीत है। आगे श्रीमती सिन्हा ने कहा कि एक सूरज धरती के भीतर है, जो कोटि-कोटि प्राणियों की आंखों को जोड़कर बना है। एक चंद्रमा धरती के भीतर है, जो हमारे मन की शीतलता के साथ रोज उग आता है। धरती की नाभि में से एक अंतरिक्ष रोज फूटता है, जिसमें पंछी चहचाहते हैं, तारे टिमटिमाते हैं, गंधर्व गाते हैं, किन्नररिया नृत्य करती हैं। धरती को मापने के बरे – बरे उद्यम हुए।वामन पहला अवतार है, जिसने अपने तीन चरणों में धरती को क्या, तीनो लोक को माप लिया था। वामन पृथ्वी का था और उसके पास जो पैमाना था, वह पृथ्वी का था। असल में तो वह एक युद्ध था, जो पृथ्वी की ओर से लड़ा गया था। गंगा को धरा पर उतारने का भागीरथ प्रयत्न भी अंततः पृथ्वी का था। हिमालय पृथ्वी का मानदंड है, लेकिन इतिहास बताता है कि मनुष्य ने स्वयं को पृथ्वी का मापदंड बनकर विजयश्री प्राप्त की।