सोच की सुंदरता मनुष्य को स्वयं ही नहीं बल्कि इस समाज को भी सुंदर बना सकता है : लक्ष्मी सिन्हा
जमशेदपुर: बिहार पटना सिटी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव लक्ष्मी सिन्हा ने बातचीत में कहा कि जब सोच निषेधात्मक या गलत होता है, तब वह सुख को भी दुख में परिवर्तन कर देता है। गलत सोच का चश्मा जितना जल्दी हो, उतार देना चाहिए। बुरे विचार जितना दूसरों का नुकसान करते हैं, उतना हूं स्वयं का भी करते हैं। कारण अपनी ही सुरक्षा को लेकर डरा दिमाग ढंग से नहीं सोच पाता। हम स्वार्थी हो जाते हैं, केवल अपने बारे में ही सोचते हैं। कहां गया है कि अपने विचार वहां तक ले जाते हैं, जहां आप जाना चाहते हैं। पर कमजोर विचारों में दूर तक यह जाने की ताकत नहीं होती। हम जो हैं वह सब विचारों का फल है। जो हम सोचते हैं, वही बन जाते हैं। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि मनुष्य अपने कार्य से दूसरों को नुकसान पहुंचाता हैं और अपने विचारों से स्वयं को। गलत सोच एवं अनैतिक कार्यों में लिप्त लोगों को धनवान और प्रतिष्ठित होते देख आदमी में नकारात्मक चिंतन जाता है। अपनी ईमानदारी उसे मूर्खतापूर्ण लगती है। वह पूनचितन करता है_क्या मिला मुझे थोथे आदर्शों पर चलकर? यह नकारात्मक चिंतन उसे भी लगत सोच के दलदल में उतार देता है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि समाज में भ्रष्ट और बेईमान लोगों की उत्पत्ति इसी तरह के गलत विचारों के संक्रमण से हुई। इस तरह का गलत सोच हमारी दुनिया को छोटा कर देता है। भीतर और बहरी दोनों ही दुनिया सिमट जाती है। अब हमारी छोटी_सी सफलता अहंकार गधा ने लगती है। थोड़ा_सा दुख अवसाद का कारण बन जाता है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि कुल मिलाकर सोच ही गड़बड़ हो जाता है। अपने ही बोले हुए को सुनते रहना ज्यादा सीखने नहीं देता। हमारा चिंतन गुणों की और केंद्रित रहना चाहिए। इसमें हमें शांति और प्रसन्नता का अनुभव होगा। निराशावादी और अवगुणवादी मनुष्य अपने चारों ओर अभावों और दोषों का दर्शन करते हैं। जो अभाव को भाव तथा दुख को सुख में बदलने की कला जानता है, उसी का जीना सार्थक है, वही सफल इंसान है। वैसे भी भविष्य उनका होता है जो सपनों की सुंदरता पर भरोसा करता है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि सुंदर सोच स्वयं ही नहीं बल्कि समाज देश एवं राष्ट्र को भी सुंदर बना सकता है।