इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आयुर्वेदिक चिकित्साधिकारी की सेवानिवृत्ति आयु सीमा तय करने का निर्देश दिया
उत्तर प्रदेश। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रमुख सचिव आयुष विभाग को आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों की सेवानिवृत्ति आयुसीमा 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने की मांग पर दो माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने डा. त्रिलोकी सिंह यादव की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता राघवेंद्र प्रसाद मिश्र ने बहस की।
चिकित्सा अधिकारी पद पर तदर्थ रूप से नियुक्ति का मामला
इनका कहना था कि याची 18 जून 1988 को चिकित्सा अधिकारी पद पर तदर्थ रूप से नियुक्त किया गया। उन्हें 30 अप्रैल 2005 को नियमित किया गया। बताया कि 31 मई 2017 की अधिसूचना से सरकार ने डाक्टरों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा 62 वर्ष कर दी है। उसका लाभ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारियों को नहीं दिया जा रहा है। याची 30 नवंबर 2021 को सेवानिवृत्त होने जा रहा है। उसे 30 नवंबर 2023 तक कार्य करने दिया जाए। याची ने प्रत्यावेदन दिया है, लेकिन उसे तय नहीं किया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है।
संविधान नहीं देता खंडपीठ बनाने की इजाजत
सेंटर फार सोशल एवं कांस्टीटयूशनल रिफार्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष संविधानविद् अमरनाथ त्रिपाठी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ गठन करने संबंधी केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू के बयान को संविधान के विपरीत करार दिया है। कहा कि संसद को भी खंडपीठ बनाने का अधिकार नहीं है। संसद राज्य पुनर्गठन कानून के जरिए नये राज्य के लिए हाई कोर्ट बना सकती है। ऐसा अधिकार केवल संसद को है। राज्य विधानसभा या मुख्य न्यायाधीश से परामर्श की आवश्यकता नहीं है।
संविधानविद् अमरनाथ त्रिपाठी ने कहा
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-130 में सुप्रीम कोर्ट को अन्य स्थानों पर बैठने का उपबंध किया गया है, लेकिन अनुच्छेद-214 में ऐसी व्यवस्था नहीं है। साफतौर पर लिखा है कि प्रत्येक राज्य का एक हाई कोर्ट होगा। राज्य पुनर्गठन एक्ट-1956 अस्थायी तौर पर छह राज्यों के लिए बनाया गया था। अमल्गमेशन एक्ट-1948 संविधान लागू होने से पहले बना था। संविधान आने के बाद उसका अस्तित्व खत्म हो गया है। इसके जरिए आगरा व अवध प्रान्त का विलय किया गया था। फेडरेशन आफ बार एसोसिएशन कर्नाटक केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि संसद को राज्य पुनर्गठन का कानून बनाने का ही अधिकार है। संविधान में हाई कोर्ट की खंडपीठ गठन की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में खंडपीठ की मांग और आश्वासन दोनों संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है।