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मैं मचल-मचल जाता हूँ
मैं मचल-मचल जाता हूँ
आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर।
पिंक परिधान पहन आना तेरा
वो महफ़िलों में मिलना तेरा
झूम झूम कर गाना तेरा
मैं भूल नहीं पता हूँ।
सच पूछो तो
तेरे तराशे तन को
निहार सखी
मैं मचल-मचल जाता हूँ।
देख मुझे मुस्कुराना तेरा
लज्जाशील अभिवादन तेरा
वो निश्च्छल प्रबल प्रतिकर्षण तेरा
भूल नहीं पता हूँ।
सच पूछो तो
तेरे तराशे तन को
निहार सखी
मैं मचल-मचल जाता हूँ।।
पास पाकर भी
पारस परस कठिन
निहारिका
तुझे कैसे समझाऊँ।
मधु हृदय का
दर्द सखी
शब्दों से ही सहलाऊँ।।
माना मुश्किल है हम होना
सोच हहर जाता हूँ।
सच पूछो तो
तेरे तराशे तन को
निहार सखी
मैं मचल-मचल जाता हूँ।।