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अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं है कि देश की पवित्र और उच्च आदर्श स्थापित करने वाली संस्थाओं के बारे में टिप्पणी की जाए,नेताओं को अपनी सीमा समझनी चाहिए: रालोजपा

भारतीय सेना के बारे में आपत्तिजनक बयान , मंत्री को देश की जनता और सेना सें माफी मांगनी चाहिए

बिहार (पटना) : राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की महिला प्रकोष्ठ की प्रदेश अध्यक्ष डॉ स्मिता शर्मा एवं प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि बिहार के सहकारी मंत्री सुरेंद्र प्रसाद यादव जिस तरह से भारतीय सेना के बारे में आपत्तिजनक बयान दिए हैं उन्हें देश की जनता और देश की सेना सें माफी मांगनी चाहिए।

डॉ स्मिता शर्मा ने कहा कि जिस तरह बिहार के सरकारी मंत्री सुरेंद्र प्रसाद यादव ने अग्निवीरों को लेकर गुरुवार को शर्मनाक बयान दिया। अग्निवीर भर्ती प्रक्रिया और सैनिकों की वीरता पर सवाल खड़ा करते हुए राजद नेता मंत्री सुरेश प्रसाद यादव ने कहा कि जिन्होंने भी अग्निवीर भर्ती कराने का फैसला किया है, उन्हें फांसी पर चढ़ा देना चाहिए। इससे भी बढ़कर उन्होंने शर्मनाक बयान दिया की आज से साढ़े आठ साल बाद देश का नाम हिजड़ों की फौज में शामिल होगा। देश के सेनाओं के लिए ऐसी टिप्पणी क्या उचित है?

रालोजपा महिला सेल की प्रदेश संगठन सचिव लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि बिहार राज्य सरकार के सहकारिता मंत्री सुरेंद्र प्रसाद यादव ने भारतीय सेना में अग्निवीरों के जींस अपमानजनक शब्दों का उपयोग किया है,वह घोर आपत्तिजनक है। राजनीतिक दलों से जुड़े नेता आजकल कुछ भी बोल कर निकल जाते हैं। समाज का बड़ा हिस्सा उन्हें गंभीरता से नहीं लेता है। मान लिया गया है कि चुनावी राजनीति में कुछ भी बोलना गलत नहीं है। लेकिन, कुछ संस्थानों के बारे में बोलने से पहले कई बार सोच लेना चाहिए। भारतीय सेना महज आम सरकारी नौकरी का साधन नहीं है। यह करोड़ों भारतीयों की शान है। देश की सीमाओं की सुरक्षा ही नहीं, प्रकृतिक आपदाओं में जानमाल की सुरक्षा में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए भारतीय सेना के शौर्य पर प्रश्न करने से पहले गंभीरता से विचार करना चाहिए।

श्रीमती सिन्हा ने कहा कि संविधान के प्रति सत्य-निष्ठा की शपथ लेने वाले मंत्री से यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वे अपने कहे के लिए माफी मांगे। साथ ही एक जिम्मेदार राजनीतिक दल के रूप में उनकी पार्टी को भी चाहिए कि उन्हें समझाएं कि आलोचना कैसे की जाती है। किसी भी योजना या नीति की आलोचना करने के क्रम में सीमा का ध्यान रखना जरूरी होता है।

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