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1932 खतियान के आधार पर स्थानीय नीति को लागू करने में हेमंत सरकार विफल : सालखन मुर्मू

जमशेदपुर। आखिर ऊंट आया पहाड़ के नीचे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कल विधानसभा में स्वीकार किया कि 1932 खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति का निर्धारण संभव नहीं है। क्योंकि झारखंड हाई कोर्ट ने पहले ही इसे खारिज कर दिया है। परंतु हेमंत सोरेन सरकार सत्ता में आने के लिए चुनावी वायदा किया था कि हम यदि सरकार में आएंगे तो 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति लागू करेंगे। नैतिकता का तकाजा है कि हेमंत सोरेन सरकार को अब कुर्सी खाली कर देना चाहिए। चुकी इसने गलत वायदा करके कुर्सी हथियाने का काम किया है। जनता को ठगने का काम किया है। दूसरी तरफ खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग करने वालों को भी अब मान्य झारखंड हाई कोर्ट के 27 नवंबर 2002 के फैसले को ठीक से पढ़ लेना चाहिए। समझ लेना चाहिए अन्यथा वे भी 1932 के खतियान के भूल भुलैया में जनता के साथ धोखेबाजी का ही काम कर सकते हैं।
पहली बार मुख्यमंत्री बनने के दौरान मान्य हेमंत सोरेन को 23 अगस्त 2013 को हमने “झारखंडी डोमिसाइल का जन प्रारूप” बनाकर प्रस्तुत किया था। जो एक पुस्तिका के रूप में झारखंड एक्सप्रेस, रांची द्वारा प्रकाशित हुआ है। जिसमें झारखंडी डोमिसाइल का आधार झारखंडी भाषा, संस्कृति और परंपरा आदि को विचारार्थ प्रस्तुत किया गया है। जिसे मान्य झारखंड हाई कोर्ट ने भी खुद अपने फैसले के पारा 9(1), पारा 13 और पारा 55(¡¡) में उद्धरित किया है।

उम्मीद है आज की झारखंड सरकार नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देगी। नया चुनाव होगा, नया झारखंड बनेगा। झारखंडी जन एकजुट होकर upa और nda से इतर झारखंडी जनों के सपनों का झारखंड – अबुआ दिसुम अबुआ राज बनायेंगे।

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