FeaturedJamshedpurJharkhand

150 घरों को तोड़ने के संबंध में विधायक श्री सरयू राय का वक्तव्य

जमशेदपुर। विधायक सरयू राय़ ने आज भुईंयाडीह इलाका के कल्याण नगर, इंदरा नगर एवं छाय़ा नगर सहित उन अन्य इलाकों का सघन दौरा किया, जहां के निवासियों को जेपीएलई के तहत जमशेदपुर के अंचलाधिकारी का नोटिस मिला है। गत छह जुलाई को जारी नोटिस में इन क्षेत्रों के निवासियों को 14 दिनों का समय दिया गया है और आगामी 20 जुलाई तक अपना स्पष्टीकरण देने का समय दिया गया है कि क्यों नहीं उनके घरों को तोड़ दिया जाए। यह सामूहिक नोटिस करीब 150 घरों के निवासियों को मिला है। घर टूटने की आशंका से सभी भयभीत हैं।
मैंने इन्हें आश्वस्त किया कि वे बस्तीवासियों के घरों को टूटने नहीं देंगे और यह मामला सरकार के सक्षम प्राधिकार के समक्ष उठाएंगे। इन सभी इलाकों के निवासी आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के हैं और अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा-पैसा जोड़कर उन्होंने अपना आवास बनाया है। जिन्हें नोटिस मिला है, उस इलाके के लोग जमशेदपुर की तथाकथित उन 86 बस्तियों के निवासी हैं, जिन्हें 2005 में टाटा लीज समझौता के अंतर्गत लीज क्षेत्र से बाहर किया गया है। इनमें से कुछ आवास सरकारी भूखंड पर भी बने हैं। जमशेदपुर की तथाकिथत 86 बस्तियों का मामला सरकार के एक नीतिगत निर्णय से आच्छादित है। यह नीतिगत निर्णय उन्हें अधिकार देता है कि वे अपने घरों का लीज सरकार से ले सकते हैं। मैं विगत चार वर्षों से प्रयासरत हूं कि इन इन क्षेत्रों के निवासियों को अपने आवासों का मालिकाना हक मिले परंतु विगत सरकार के एक गलत निर्णय के कारण बस्तियों के मालिकाना हक पर वर्तमान सरकार भी निर्णय नहीं ले पा रही है। पिछली सरकार ने वर्ष 2017 में यह निर्णय लिया था कि ऐसी बस्तियों के निवासियों को 10 डिसमिल आवासीय क्षेत्र पर सरकार लीज देगी। यह निर्णय बस्तियों को मालिकाना हक मिलने में सबसे बड़ा बाधक है। मैंने इसे बदलवाने के लिए विगत विधानसभा में 4 बार से अधिक प्रश्न और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है।
भुईंयाडीह क्षेत्र के बस्तीवासियों की इस समस्या के बारे में मैंने आज जिला प्रशासन के सक्षम पदाधिकारियों से बातचीत किया तो उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्य़ूनल (एनजीटी) के आदेशानुसार जल संसाधन विभाग, मानगो नगर निगम, जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति और जिला प्रशासन का एक संयुक्त सर्वेक्षण हुआ है जिनमें करीब 150 घरों को चिन्हित कर उन्हें नोटिस दिया गया है। इन्हें आगामी 20 जुलाई तक नोटिस का जवाब देने के लिए कहा गया है। मैंने इन अधिकारियों से कहा कि बस्तीवासियों को दी गई नोटिस में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव है। मैं ग्रीन ट्रिब्यूनल के प्रासंगिक निर्णय का अध्ययन करूंगा और बस्तीवासियों को दी गई नोटिस में व्याप्त विसंगतियों की तरफ सरकार और जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करूंगा। मैं सरकार से बातचीत करूंगा कि इस बारे में एक राज्यस्तरीय बैठक बुलाई जाए और बस्तीवासियों को दी गई नोटिस की विसंगतियों और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश की व्यावहारिकता पर विचार किया जाए।
एनजीटी के समक्ष जिला प्रशासन और राज्य सरकार ने किस तरह से अपना तथ्य प्रस्तुत किया है, इस पर विचार करना आवश्यक है। हम सभी नदियों के संरक्षण के पक्षधर हैं परंतु एनजीटी के सामने विषय को पूर्णता में रखना आवश्यक है। जमशेदपुर शहर की वस्तुस्थिति से भी ट्रबियूनल को अवगत करना जरूरी है। केवल समस्या के आंशिक दृष्टिकोण के मद्देनजर भुईंयाडीह इलाके की बस्तियों को ही लक्षित करना न्यायसंगत नहीं होगा। विधानसभा के गत सत्र में मेरे एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा था कि जमशेदपुर की बस्तियों का कोई भी घर सरकार नहीं तोड़ेगी।
मैं सरकार और जिला प्रशासन के सामने यह विषय रखना चाहता हूं कि जिस समय ये बस्तियां बस रही थीं, उस समय यहां के निवासियों को क्यों नहीं रोका गया और उन्हें वस्तुस्थिति की जानकारी क्यों नहीं दी गई। इन बस्तियों में टाटा स्टील की एक इकाई जुस्को ने पानी और बिजली दिया है, जमशेदपुर अक्षेस ने विधायक मद, सांसद मद एवं जिला योजना मद से इन इलाकों में सड़कों का निर्माण किया है। एक सामुदायिक शौचालय भी नदी किनारे जमशेदपुर अक्षेस द्वारा जिला योजना से निर्मित किया गया है। वस्तुतः बस्तीवासियों ने मकान बनाने के लिए भूखंड किसी न किसी से खरीदा है। यह खरीद प्रशासन और नगरपालिका की जानकारी के बगैर नहीं हुई। वहां नागरिक सुविधाएं देते समय और विकास कार्य करते समय भी प्रशासन की जानकारी में सारे काम हुए हैं। सरकार के अधिवक्ता ने ये सारे तथ्य एनजीटी के सामने रखा हैं या नहीं, इसकी जानकारी होनी चाहिए। केवल गरीब और सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से कमजोर बस्तीवासियों को ही निशाना बनाना उचित नहीं होगा। मैं यह विषय इसी माह के अंत में होने वाला विधानसभा सत्र में भी उठाऊंगा और कहूंगा कि नदी के संरक्षण और नदी किनारे की बसाहट में एक संतुलन कायम होना चाहिए। केवल गरीबों के घरों को तोड़ना, उन्हें उजाड़ना कत्तई न्यायसंगत नहीं है। सरकार को चाहिए कि ये सारी बातें एनजीटी के सामने रखे और प्रासंगिक कार्य से संशोधन कराए ताकि गरीब-गुरबा को उजड़ने से बचाया जा सके।

Related Articles

Back to top button