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सावधान, टाटानगर स्टेशन में यात्री सुरक्षित नहीं, बिना संवेदक की नियुक्ति के पानी व अन्य खाद सामग्री का चल रहा खेल, रेल मंत्री से शिकायत के बाद हड़कंप

बोतलबंद पानी कुरकुरे, चिप्स बीकानेर भुंजिया की टाटा प्लेटफार्म पर हो रही है धड़ल्ले से बिक्री, रेल को राजस्व की भारी क्षति, आरटीआई खुलासे से खुली अवैध कारोबार की पोल

जमशेदपुर। टाटानगर रेलवे स्टेशन में अवैध कारोबार धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं. चक्रधरपुर मंडल के वरीय अधिकारियों की आंख में धूल झोंककर स्थानीय अधिकारी इस खेल में संलिप्त है. इसका खुलासा एक आरटीआई में हुआ है, जिसके बाद स्थानीय रेल महकमे में खलबली मच गई है. दरअसल, टाटानगर स्टेशन में
बिना संवेदक की नियुक्ति के
प्लेटफार्म पर विभिन्न स्टालों पर एक ओर बोतलबंद पानी, कुरकुरे चिप्स, बीकानेर भुंजिया आदि की धड़ल्ले से बिक्री हो रही है. इसके स्टॉक रखने के गोडाउन और बिना स्वीकृति के ट्रॉली भी टाटानगर प्लेटफार्म पर चल रही है.
रेल प्रशासन व रेल सुरक्षा बल की चुप्पी संदेह के घेरे में है. इस बात का खुलासा हुआ है एक आरटीआई में. जहां कार्यकर्ता कमलेश कुमार ने लाखों करोड़ों के इस अवैध कारोबार पर उंगली उठाई है. पहले तो रेल के आला अधिकारियों ने आरटीआई के द्वारा मांगी गई जानकारी दी, उससे कमलेश कुमार संतुष्ट नहीं हुए तो उन्होंने फिर अपीलीय पदाधिकारी के यहां जानकारी के लिए लिख दिया. वहां से जो जानकारी मिली वह हैरान करने वाली थी, जिससे पता चलता है कि कहीं ना कहीं संवेदक की पिछले दरवाजे से नियुक्ति हो चुकी है, लेकिन उसे कागज पर नहीं दर्शाया जा रहा है और रेलवे को भारी नुकसान पहुंचाने का खेल पिछले तकरीबन तीन-चार सालों से जारी है, जिससे सरकार को भी जीएसटी इनकम टैक्स वगैरह का भी नुकसान हो रहा है और तो और जानकार सूत्रों से यह भी पता चला है कि रात 8:00 बजे के बाद नाबालिक बच्चों से भी ढुलाई वगैरह का काम कराया जाता है, जिनके पास आईडी नहीं होती है. वहीं बिना कागज वाले ट्रॉली ठेले भी चलते हैं. यदि सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है.
जानकार सूत्र यह भी बताते हैं कि पहले कथित रूप से केपी ट्रेडर्स दानापुर के नाम से रसीद दिया जाता रहा है. वहीं फिलहाल एक पार्टनरशिप फर्म ….. फूड प्रोडक्ट के द्वारा सामानों की आपूर्ति हो रही है. वैसी स्थिति में यदि पानी और सामानों की क्वालिटी कुछ गड़बड़ हो जाए और इससे कुछ भीषण दुर्घटना घट जाए इसकी जिम्मेवारी किसकी होगी यह प्रश्न चिन्ह उठता है? बताया जाता है कि इनके गोदाम स्टेशन के आसपास के रेलवे कॉलोनियों में हैं. जहां इन्होंने संबंधित विभाग की मिलीभगत से रेल के जर्जर क्वार्टरों को गोदाम बना रखा है. जहां से बिना कागज पत्र वाले ट्रॉली से प्लेटफार्म पर भी बोतलबंद पानी की आपूर्ति होती है. कुल मिलाकर टाटानगर में यात्रियों की जान से खिलवाड़ हो रहा है, इसे झूठलाया नहीं जा सकता. स्थानीय वाणिज्य अधिकारी मामले में टाल मटोल जवाब दे रहे हैं. अब कमलेश कुमार ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को अवगत कराया है. रेल मंत्री से शिकायत की विभिन्न जांच एजेंसी, अन्य निगरानी विभाग और गोपनीय जांच कराने की मांग की है ताकि यात्रियों का जीवन सुरक्षित बना रहे. वहीं, अवैध कारोबार को बंद करने और इसे संरक्षण देने वाले विभागीय पदाधिकारियों की चल अचल सम्पत्ति की जांच कर उनपर विभागीय कार्रवाई करने की आवाज उठाई है. शिकायत की प्रति प्रधानमंत्री, रेलवे बोर्ड चेयरमेन, रेल जीएम, डीआरएम, रेल एसपी, आरपीएफ सीनियर कमाडेंट को भी दी गई है. साथ ही इन अधिकारियों को ट्वीट भी किया है. आरोपित की पकड़ के आगे अधिकारी बौने साबित हो रहे हैं. हर दिन ट्रक पे ट्रक रेल नीर पानी उतर रहा है. जब संवेदक नहीं है तो यह कैसे हो पा रहा है. यदि उक्त पानी पीकर यात्री के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है तो उसका जिम्मेवार सीधे तौर पर स्थानीय और मंडल के अधिकारी होंगे.

मामले का खुलासा इस प्रकार हुआ
आरटीआई व सामाजिक कार्यकर्ता कमलेश कुमार ने 19 अक्टूबर 2022 को पहली बार सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जन सूचना पदाधिकारी सह वरिष्ठ मंडल कार्मिक पदाधिकारी चक्रधरपुर रेल मंडल दक्षिण पूर्व रेलवे से सिलसिलेवार ढंग से 3 प्रश्न रखते हुए जवाब अभिप्रमाणित कागजात के साथ उपलब्ध कराने का आग्रह किया.

आरटीआई कार्यकर्ता के प्रश्न
1) टाटानगर रेलवे स्टेशन पर रेलवे के विभिन्न स्थानों पर बोतलबंद पानी कुरकुरे चिप्स बीकानेर का भुजिया इत्यादि सप्लाई करने हेतु भाड़े पर रेलवे द्वारा संवेदक रखा गया है. उक्त कार्यों में रखे गए संवेदक का नाम संवेदक के साथ किए गए समझौते पत्र की छाया प्रति अभिप्रमाणित या कार्य देश की छाया प्रति अभिप्रमाणित उपलब्ध कराया जाए.
2) टाटानगर रेलवे स्टेशन पर बोतलबंद पानी चिप्स कुरकुरे इत्यादि सप्लाई हेतु रखे गए गोडाउन संवेदक के द्वारा कहां कहां रखे गए हैं एवं संवेदक का गोडाउन रेलवे एवं आईआरसीटी से स्वीकृति प्राप्त है तथा उक्त गोडाउन का निरीक्षण अधिकारी कौन है. उक्त लोक सेवक का नाम गोडाउन का संपूर्ण पता गोदाम का स्वीकृति पत्र गोडाउन का क्षेत्रफल की सूची अभिप्रमाणित उपलब्ध कराया जाए तथा उक्त कार्य हेतु रखे गए श्रमिकों की सूची नाम पदनाम वेतनमान सभी का पुलिस वेरिफिकेशन कार्य अवधि की विवरणी अभिप्रमाणित उपलब्ध कराया जाए.

3) टाटानगर रेलवे स्टेशन का बोतल बंद पानी चिप्स कुरकुरे बीकानेर का भुजिया इत्यादि सप्लाई में लगे स्टेशन परिसर में प्रवेश हेतु लिए गए ट्राली प्रवेश कब स्वीकृति पत्र की छाया प्रति अभिप्रमाणित दिया जाए तथा कुल कितने ट्रॉली इस कार्य में रखी गई है उसकी भी संख्या बताई जाए.
आरटीआई कार्यकर्ता ने जानकारी का मकसद यह बताया है कि रेलवे के द्वारा संबंधित स्टॉल सूत्र अनुसार किसी के नाम पर आवंटित एवं उक्त स्टॉल पर कारोबार करने वाला कोई अन्य व्यक्ति है जो वैधानिक दृष्टिकोण से अनुचित है. उसमें पारदर्शिता लाया जाना अति आवश्यक है.

जन सूचना अधिकारी का जवाब
1) चक्रधरपुर डिवीजन के द्वारा इस संदर्भ में संवेदक की नियुक्ति नहीं की गई है.
2) चूंकी संवेदक की नियुक्ति नहीं की गई है. अतः अपेक्षित जानकारी उपलब्ध नहीं है.
3) चक्रधरपुर डिवीजन के द्वारा इस संदर्भ में ट्रॉली प्रवेश की स्वीकृति पत्र प्रदान नहीं की गई है अतः अपेक्षित जानकारी उपलब्ध नहीं है.
जन सूचना अधिकारी ने यह भी कहा है कि यदि आपको लगता है कि उपरोक्त जानकारी संतोषजनक नहीं है तो आप 30 दिनों के भीतर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकते हैं जिसका पता नीचे दिया गया है.
वहीं दूसरी ओर इसके बाद फिर से 9 दिसंबर 2022 को आरटीआई कार्यकर्ता ने अपर मंडल रेल प्रबंधक आरटीआई अधिनियम के तहत 19 अक्टूबर 2022 को प्रथम अपीलीय प्राधिकारी चक्रधरपुर से पूर्व अधिकारी से अपने द्वारा मांगे गए सवालों और उनके द्वारा दिए गए जवाब की प्रतिलिपि के साथ अपील किया और फिर जानकारी मांगी. जिस पर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी ने भी हुबहू वही जवाब दिया.
बहरहाल इस तरह रेलवे को और केंद्र सरकार को राजस्व की भारी क्षति हो रही है. जब भी इस गोरखधंधे में शामिल लोग और इस को संरक्षण देने वाले अफसर कहीं ना कहीं मालामाल हो रहे हैं, जो कि जांच का विषय है. इधर आरटीआई कार्यकर्ता का कहना है कि वे जन सूचना अफसरों से सही और सटीक जवाब देने की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन यदि उन्हें सही जवाब नहीं मिलता है तो एक लोक सेवक और सामाजिक कार्यकर्ता का दायित्व निर्वहन करते हुए मामला रेल मंत्रालय तक लेकर गए हैं.

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