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महाभारत के प्रसंगों में हमारे जीवन की समस्याओं कां समाधान – विजयशंकर मेहता

जुगसलाई में कलश यात्रा से भागवत ज्ञान यज्ञ कथा का शुभारंभ

जमशेदपुर। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं श्रीमद् भागवत में विराजित है। उद्धव को अपने अंतिम संदेश में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट यह घोषणा की है। भागवत का प्रधान विषय है निष्काम भक्ति। महाभारत में जितने भी प्रसंग आए हैं, उनमें हमारे जीवन की समस्याओं कं समाधान मिलते हैं। जीवन में जब हमारे अपनो से ही युद्ध करना पड़े तो कैसे खुद को संभाला जा सकता है यह भगवान कृष्ण से सीखें। यह उद्गार प्रसिद्ध जीवन प्रबंधन गुरू पंडित विजयशंकर मेहता ने व्यास पीठ से जुगसलाई एमई स्कूल रोड़ स्थित श्रीराजस्थान शिव मंदिर परिसर में संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा के पहले दिन शनिवार को व्यक्त किए। उन्होंने तनाव रहित जीवन में अध्यात्म का महत्व बताया साथ ही भागवत का माहातम्य,आत्मदेव प्रसंग तथा महाभारत के प्रसंगों की व्याख्या परिवार प्रबंधन के सूत्रों के साथ की। उन्होंने परिवार प्रबंधन के सूत्र-संयम के आधार पर कथा की व्याख्या की। परिवारों में प्रेम की भाषा बोलनी चाहिए। संयम और धैर्य इसमें बड़े काम आएंगे। कथा के दौरान उनके संगीत पार्षदों द्वारा सुमधुर भजनों की प्रस्तुति भी दी गयी। सात दिवसीय श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ कथा का आयोजन 23 दिसम्बर तक होगा। इसका आयोजन जुगसलाई के चौधरी परिवार द्धारा किया जा रहा हैं। शनिवार की सुबह 11 बजे कलश यात्रा से इस धार्मिक कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। जुगसलाई चौक बाजार स्थित सत्यनारायण ठाकुरबाड़ी मंदिर से कलश यात्रा का शुभारंभ हुआ, जो कथा स्थल श्री राजस्थान शिव मंदिर पहुॅचा। कलश यात्रा की पूजा सत्यनारायण ठाकुरबाड़ी मंदिर में हुई। उससे पहले श्री राजस्थान शिव मंदिर के हॉल में स्थानीय पुजारी मूलचंद शर्मा, दिपक जोशी, मनीष शर्मा गोलू, सत्यनारायण शर्मा ने संयुक्त रूप से पूजा करायी। पूजा के मुख्य यजमान बीणा-जयराम चौधरी, यजमान निशी-निकेश चौधरी, नेहा-नवनीत और श्वेता-आनन्द थे। कलश यात्रा में चौधरी परिवार के 150 से अधिक लोग शामिल थे। कथा के दूसरे दिन रविवार को कपिल गीता, शिव-सती चरित्र, धु्रव चरित्र आदि प्रसंगों की व्याख्या सुमधुर भजनों के साथ की जाएगी। मालूम हो कि पंडित मेहता अपनी मौलिक विचार दृष्टि और ओजस्वी वाणी के साथ जीवन प्रबंधन एवं परिवार प्रबंधन पर व्याख्यान एवं कथाओं की व्याख्या के लिए जाने जाते हैं। आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रमुख रूप से जयराम, नवनीत, रतन, पुरूषोतम, आनन्द, मुकेश, विशाल, मनोहर, बंटीख् सुनील, बिल्लू, श्रवण आदि का योगदान रहा।

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