सरकार के 2 साल का कार्यकाल पूरा, पर अबुआ दिसुम अबुआ राज स्थापित करने के बजाए विस्थापित करने का काम किया : सालखान मुर्मू
![](https://newsdhamaka.com/wp-content/uploads/2021/12/IMG-20211229-WA0039-689x470.jpg)
जमशेदपुर। हेमंत सरकार को दो वर्ष हो गए। मगर अब तक इसने “अबुआ दिशोम अबुआ राज” को स्थापित करने की बजाय विस्थापित करने का काम किया है। अतएव सेंगेल हेमंत सरकार का विरोध करती है। किसी भी राज्य और राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा- संस्कृति और नागरिकों के जातिगत पहचान से बनती है। यही स्थानीयता, राष्ट्रीयता/ उप राष्ट्रीयता आदि का मूल आधार बिंदु है। भारतीय संविधान के मूल अधिकारों के अनुच्छेदों ने इसको स्थापित किया है। जिसे नवगठित झारखंड प्रदेश को अबतक स्थापित कर लेना चाहिए था। मगर सभी सरकारों ने इसको विफल किया है और निजी स्वार्थों हेतु केवल रूटीन सरकारी काम किया है। जबकि झारखंडी जन को केवल विकास नहीं बल्कि अस्तित्व, पहचान और भागीदारी/ हिस्सेदारी के साथ विकास चाहिए। अन्यथा उनके लिए विकास, विनाश बन जाता है। लगता है गुरुजी शिबू सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा को केवल वोट और सत्ता की राजनीति आती है, सम्मान और न्याय कि नहीं। उसी का प्रतिबिंब है हेमंत सरकार।
सेंगेल सभी के भाषा- संस्कृति का सम्मान करती है। मगर झारखंड में आदिवासी- मूलवासी को दरकिनार और विस्थापित कर नहीं। हेमंत सरकार विफल है क्योंकि इसने अब तक स्थानीय नीति, न्याय पूर्ण आरक्षण नीति, स्थानीय भाषा-संस्कृति पर आधारित शिक्षा नीति- रोजगार नीति आदि को स्थापित करने की बजाय उल्टा काम किया है। केवल वोट की राजनीति से ग्रसित होकर खुद झारखंडी जन और उसकी भाषा- संस्कृति का अवहेलना कर रही है।
सेंगेल फिलहाल 22 दिसंबर 2021 से “हासा- भाषा विजय दिवस” के पालन के साथ साल के अंत तक “सरना धर्म कोड सह संताली राजभाषा सगड़ या रथ” 5 प्रदेशों में चलाकर जन जागरण का काम कर रही है। हेमंत सरकार एकमात्र राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त, आठवीं अनुसूची में शामिल संताली भाषा को अविलंब झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा क्यों नहीं देना चाहती है ? क्यों बाकि आदिवासी भाषा ( मुंडारी हो कुरुख खड़िया) और क्षेत्रीय भाषा (खोरठा कुरमाली पंचपरगानिया नागपुरी) के साथ सौतेला व्यवहार कर गैर झारखंडी भाषाओं को थोपना चाहती है ? सरना धर्म कोड के मामले पर क्यों टालमटोल का रवैया अपनाती है? पुलिस अफसर रूपा तिर्की और सिदो मुर्मू के वंशज रामेश्वर मुर्मू के संदिग्ध हत्या मामले पर सीबीआई जांच के मामले पर संवेदनहीन क्यों है? शिक्षित बेरोजगार आदिवासी – मूलवासी नवयुवकों के साथ बेपरवाह क्यों है? सीएनटी- एसपीटी कानून को छेद करने वाली लैंड- पूल बिल 23 मार्च 2021 को क्यों पास किया? टीएसी के मामले पर संविधान विरोधी छेड़छाड़ क्यों ?
झारखंड में गैर झारखंडी भाषा और गलत स्थानीयता के निर्धारण के खिलाफ पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो के भावना, विचार और चिंता का सेंगेल समर्थन करती है। सेंगेल गैर झारखंडी भाषाओं के खिलाफ नहीं है बल्कि उनको थोपने वाली हेमंत सरकार के खिलाफ है। सेंगेल झारखंड के अलावे बंगाल बिहार उड़ीसा और असम छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में रह रहे आदिवासी- मूलवासीयों के साथ है। झारखंड को भारत के आदिवासियों का गढ़ या केंद्र मानती है। अतएव बृहद झारखंड की अपेक्षा इस समय वर्तमान झारखंड दिशोम को उसके सपनों के साथ बचाना ज्यादा जरूरी है। सेंगेल इसके लिए संघर्षरत है।
सालखन मुर्मू, पूर्व सांसद
राष्ट्रीय अध्यक्ष, आदिवासी सेंगेल अभियान (सेंगेल),
9430727700।