FeaturedJamshedpurJharkhandNational

आत्मा को रंगना ही आध्यात्मिक होली है: लक्ष्मी सिन्हा

बिहार पटना: आध्यात्मिक ज्ञान के रंग से आत्मा की चोली को रंगना ही वास्तविक होली मनाना है। माया का रंग तो हर एक मनुष्य पर चढ़ा हुआ है। अब ईश्वरीय संग के रंग में आत्मा को रंगना ही आध्यात्मिक होली है।
यह बातें सुरक्षा समाज पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा उन्होंने आगे कहा कि होली का पावन त्योहार हमारे जीवन में नई उमंग, उत्साह, उल्लास के रंग बिखेरने आती है। अक्सर हम बाहरी स्थूल रंगों से होली खेलते हैं, जो हमारे भीतर की भावनाओं को बताते हैं। जैसे अंतरात्मा के बिना शरीर का मूल्य नहीं होता, वैसे ही आध्यात्मिक अर्थ समझे बिना त्यौहार मानना ठीक नहीं है। वस्तुत: होली से पहले महाशिवरात्रि का उत्सव आता है, जो वास्तव में ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव का पर्व है। परमात्मा शिव अपने ‘संग का रंग’ यानी ज्ञान-योग मनुष्यों को देते हैं। इसी की स्मृति में शिवरात्रि के बाद होली आती है। इससे स्पष्ट है, आध्यात्मिक ज्ञान के रंग से आत्मा की चोली को रंगना ही वास्तविक होली है। जब परमात्मा ज्ञान का रंग लगता है, तब मनुष्य का आत्मा पवित्र रहने का व्रत लेता है। वह मन,वचन व कम से पवित्रता की रक्षा करता है। इसलिए होली के बाद रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। होली पर सभी मिलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। लगाना तो पहले ज्ञान का रंग चाहिए। ज्ञान की दृष्टि में इस सृष्टि में दो ही रंग हैं, एक माया का और दूसरा ईश्वर का। हर मानव इन दोनों रंगों में से एक न एक रंग में तो रंगता ही है। ईश्वरीय रंग में रंगना ही श्रेष्ठ होली मनाना है भगवान के रंग में रंगा हुआ व्यक्ति योगी और माया के रंग में रंगा हुआ भोगी है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने आगे कहा कि अब स्वयं से पूछना है कि मैं किस रंग में रंगा हुआ हूं- माया या ईश्वर के? अबीर व गुलाल लगाकर एक या दो दिन का आपसी स्नेह मिलन तो हो सकता है, पर सच्चा मंगल मिलन तो तभी होगा, जब हृदय शुद्ध हो और एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, गुस्सा आदि ना हो। मनमुटाव, भेदभाव व विकार दूर करने के लिए अपने जीवन को ‘होली’अर्थात पवित्र बनकर होली खेलने में ही इस पर्व की सार्थकता है। आज हमें प्यार और सम्मान का रंग एक-दूजे को लगाना चाहिए। हमें अपने व्यसन व अवगुण रूपी होलिका को ईश्वरीय ज्ञान की अग्नि में भस्म करना है। हमें भक्त पहलाद की तरह मन, बुद्धि और हृदय से भगवान के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए और भगवान की मर्यादाओं को जीवन में धारण कर लेना चाहिए।

Related Articles

Back to top button