शहिदों को श्रद्धांजलि
विश्वासों के खंबे उखड़ गए आहो की मार से,
आततायी की आतंकवाद नीति से पड़ गयी दरारे धरती मे।
जो कभी थी अपनी याचना पर दी गई दया से,
अनिधिकृत हुई जो अभावों की आग मे रहे बंधुओं भु़ंजते जमीदारों ने।
स्वार्थ का पल्ला पकड़ा अत्याचार के चाबुक से सपनों को नोच डाला,
अरमानो की छपरी छीन ली असंतोष के अर्तनाद से मन खौला उठा है।
उफंता खून मचला विद्रोह को दबा कुछ और दबाया गया,
दबाव ने डाल दिये क्रांति के बीज जिन्हें सीचा शहीदों के तप्त खून से।
जो मर मर कर फिर जी उठे बांधे सर पर कफ़न एक होंसला बन गया था,
देश पर बलि चढ़ने की सौगन्ध का बीज से पौधा हुआ और आजादी का छायादार
वृक्ष बना जिसकी चाह मे शांति खोजता रही लटकती जिंदा लाशें,
जिनके छप्पर,खम्बे उखड़ चुके थे क्या पनाह पा सके ?
अजादी के फल का स्वाद चख के क्रांति की अकुलाहट वाले शांति की खोज मे।
भटकती अतृप्त आत्माओ को कोन सी श्रद्धांजलि शांति देगी या जिंदा पिंडदान अभी और चढ़ना बाकी है।
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त
हास्य कवि व्यंग्यकार
अमन रंगेला “अमन” सनातनी
सावनेर नागपुर महाराष्ट्र