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गीता कोड़ा के भाजपा में शामिल होने के बाद इस बार लोकसभा चुनाव में कौन होगा चाईबासा का किंग ? जानिए जातीय समीकरण

बीजेपी ने कांग्रेस के साथ-साथ झामुमो के लिए भी खड़ी कर दी मुश्किलें

संतोष वर्मा
चाईबासा। वैसे तो कोलहान में बड़े चेहरे वाले नेता और सहजता से लोगों के बिच मिलने वाली नेत्री के रूप से छाप छोड़ने वाली सिंहभूम के सांसद गीता कोड़ा कांग्रेस का दामन छोड़ देश के यशश्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा बनाये जाने वाले सपनों का भारत को सफल बनाने वाली मुहीम में जुड़ गई है भाजपा का दामन थाम कर।वहीं अब राजनिती गलियारों चर्चित हो रही गीता कोड़ा के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने से कांग्रेस को बहुत बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस पार्टी को इसकी जरा सी भी भनक तक नहीं लगी की कि गीता कोड़ा ऐसे समय में पार्टी का साथ छोड़ देगी जब कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनाव 2024 का एलान हो जाएगा. बताया ये भी रहा है कि पश्चिमी सिंहभूम से सांसद गीता कोड़ा प्रदेश में कांग्रेस गठबंधन से नाराज चल रही थीं. उन्होंने इस बात से वरिष्ठ नेताओं को अवगत भी कराया, लेकिन अपनी बात नहीं सुने जाने के बाद कांग्रेस छोड़ने का निर्णय लिया.

2009 में पहली बार विधायक बनी गीता कोड़ा

बता दें कि जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे नेताओं का दल बदलने का सिलसिला भी देश भर में तेज होता जा रहा है. 26 सितंबर 1983 को जन्मी गीता कोड़ा 12वीं क्लास तक पढ़ी है. साल 2009 में पहली बार जगन्नाथपुर विधानसभा से चुनाव जीतीं. वह पूर्व में जय भारत समानता पार्टी में भी रह चुकी हैं और दो बार विधायक का चुनाव जीत चुकी हैं. पूर्व में उनके पति मधु कोड़ भी पश्चिमी सिंहभूम से सांसद रह चुके हैं.

इस बार चाईबासा का कौन होगा किंग

क्योंकि गीता कोड़ा ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है. 2019 चुनाव में पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ को पश्चिमी सिंहभूम सीट से कांग्रेस की टिकट पर लड़ीं गीता कोड़ा ने करारी शिकस्त दी थी. जबकि 2014 में इसी सीट से लक्ष्मण गिलुआ ने भारी अंतर से जीत हासिल की थी. अब सवाल उठता है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में चाईबासा का किंग कौन होगा. दरअसल चाईबासा लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. ऐसा माना जाता है कि यहां से जीत हालिस करने के लिए इस जनजाति के वोटरों का साथ होना जरूरी है. यहां कुल 11 लाख से ज्यादा मतदाता हैं और साल 2019 लोकसभा चुनाव में कुल 69 फीसदी मतदान हुआ था. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गीता कोड़ा को साथ लाकर बीजेपी ने चाईबासा और उसके आसपास के बड़ी संख्या में अनुसूचित जनजाति के वोटों में सेंध लगा ली है. अब देखने वाली बात होगी कि आने वाले आम चुनाव में कांग्रेस इस सीट को बचा पाती है या बीजेपी फिर से इस सीट पर कब्जा कर पाती है. कोल्हान और संथाल में बीजेपी की कमजोर कड़ी है. ऐसे में गीता कोड़ा को शामिल कर बीजेपी ने साध लिया है. हालांकि ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पायेगा कि ये सीट किसके पाले में जायेगा.

क्या है चाईबासा के जातीय समीकरण ?

गीता कोड़ के पार्टी छोड़ने पर कांग्रेस को किस तरह नुकसान और बीजेपी को कैसे सियासी लाभ होगा इसको लेकर चर्चाएं तेज हो गयी है. गीता कोड़ा के इस्तीफे के बाद चाईबासा के जातीय समीकरण को समझना भी जरूरी हो गया है. यह सीट सरायकेला- खरसावां और पश्चिमी सिंहभूम जिले में फैली हुई है. यह इलाका रेड कॉरिडोर का हिस्सा है. इस सीट पर अनुसूचित जनजाति का दबदबा है. उरांव, संताल समुदाय, महतो (कुरमी), प्रधान, गोप, गौड़ समेत कई अनुसूचित जनजातियां, ईसाई व मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

बीजेपी ने कांग्रेस के साथ-साथ झामुमो के लिए भी खड़ी कर दी मुश्किलें

2014 के चुनाव में बीजेपी को अनुसूचित जनजातियों की गोलबंदी के कारण जीत मिली थी. इस सीट के अंतर्गत सरायकेला, चाईबासा, मंझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर विधानसभा सीटें आती हैं. ये सभी सीटें भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इनमें से जगन्नाथपुर से सोनाराम सिंकू विधायक हैं. बाकी पांच पर जेएमएम का कब्जा है. यहां कुल मतदाता 11.52 लाख हैं. इनमें से 5.83 लाख पुरुष और 5.69 लाख महिला वोटर्स शामिल हैं. 2019 में यहां पर 69 फीसदी मतदान हुआ था. ऐसे में भाजपा ने एक तीर से दो निशाना साधा है. पहला लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है दूसरा विधानसभा के पांच सीटों पर झामुमो के राह में रोड़ा अटका दिया है. हालांकि अब देखना होगा कि आने वाले चुनाव में झामुमो और कांग्रेस कैसे कांटे निकाल पाती है, या कांटा उनके गले में ही अटक जाती है.

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