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राहुल गांधी की घोषणा का हम स्वागत है, जिन्होंने सत्ता में आने पर आदिवासियों के सरना धर्म कोड को जनगणना प्रपत्र में शामिल कराने की बात कही है : अमृत माझी

चाईबासा । कांग्रेस के संघर्षशील नेता राहुल गांधी की उस घोषणा का हम स्वागत करते है,जिन्होंने सत्ता में आने पर आदिवासियों के सरना धर्म कोड को जनगणना प्रपत्र में शामिल कराने की बात कही है। यह प्रतिक्रिया झारखंड पुनरूत्थान अभियान के जिला संयोजक पूर्व बैंक कर्मी अमृत मांझी ने कहा है।विदित हो 2001 के जनगणना के ठीक पूर्व झारखंड में सरना नहीं तो जनगणना नहीं का जन आंदोलन के बाद कम से कम झारखंड में जनगणना प्रपत्र में अन्य के जगह सरना लिखने का अनौपचारिक रूप से अंकित किया गया था। जिसमें कम से कम झारखंड के वैसे आदिवासी जो सरना धर्म पर विश्वास करता है,वैसे धर्मावलंबी जनगणना प्रपत्र में सरना लिखकर अपना धार्मिक आस्था को अभिव्यक्त किया था। लेकिन अब जनगणना के जगह डिलिस्टिंग का काम चल रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। यह कहीं न कहीं सरना धर्मावलंबी को वैसे ही हिंदू प्रपत्र में अपना नाम दर्ज करने के लिए विवश करने के बराबर है,जैसे झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल मरांडी ने 2001 के जनगणना प्रपत्र में अपना नाम हिंदू कॉलम में भरा था। यह आरएसएस,भाजपा का आदिवासियों के प्रति मूल विचार है।क्योंकि भाजपा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता है।सर्वविदित है भारत के जनगणना प्रपत्र के सात कॉलम में सिख,बौद्ध,जैन,पारसी धर्म मानने वालो की संख्या पर गौर करेंगें तो 2011 के जनगणना के अनुसार सिख धर्म मानने वाले मात्र 1.72फीसदी,बौद्ध धर्म मानने वाले 0.70 फीसदी,जैन धर्म मानने वाले 0.37फीसदी है। फिर आदिवासियों के हितैषी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह क्यों आदिवासियों को सरना धर्म कोड या कॉलम नहीं देना चाहता है,यह सरना धर्म पर आस्था रखने वाले आदिवासियों को समझने की अवश्यकता है।

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