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लगातार शिकायतों के बावजूद मध्याह्न भोजन में केंद्रीकृत किचन योजना को बंद नहीं करने के विरुद्ध बच्चे और ग्रामीण अब सड़क पर उतरे

संतोष वर्मा
चाईबासा। खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम ने मध्याह्न भोजन में किद्रीकृत किचन योजना को बंद कर पुरानी व्यवस्था लागू करने की मांग पर पुराना उपायुक्त कार्यालय, चाईबासा के समक्ष धरना दिया. धरने में चार प्रखंड (सदर, खुंटपानी, तांतनगर, झिंकपानी) समेत अन्य प्रखंडों के अनेक अभिभावक, बच्चे, रसोइया व सामाजिक कार्यकर्ता भाग लिए. अर्थशास्त्री सह सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज़ भी धरने में रहे. चारो प्रखण्ड के 370 सरकारी विद्यालयों में जनवरी-अप्रैल 2023 से मध्याह्न भोजन में केंद्रीकृत किचन व्यवस्था लागू की गयी है। यह किचन अन्नामृत फ़ाउंडेशन द्वारा चलाया जा रहा है, जो इस्कॉन मंदिर की संस्था है। धरने में चिटीमिटी के छात्र जुंडिया सवैया ने कहा कि पहले जब विद्यालय में भोजन बनता था, तब गर्म, ताज़ा और स्वादिष्ट भोजन मिलता था।

हरा साग-सब्जी भी मिलता था। लेकिन सेंट्रल किचन के खाने में एक अजीब महक रहती है। हरा साग कभी नहीं मिलता है। छात्रा प्राची कालिंदी ने कहा कि दाल और खिचड़ी पानी-पानी रहता है. चावल और दाल कई बार खट्टा हो जाता है. सब्जी में आलू का बड़ा-बड़ा टुकड़ा रहता है जो कभी-कभी पूरा सीझता भी नहीं है। विभिन्न प्रखंडों से आई रसोईया ने भी कहा कि खाना समय पर नहीं आता है। बच्चे अब खाना फेक देते हैं।अभिभावक उषा देवगम ने कहा कि अब बच्चों के सेहत, पोषण व विद्यालय आने की इच्छा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।मंच के कार्यकर्ता रामचंद्र माझी ने कहा मंच ने सितंबर-नवम्बर 2023 में ज़िला के 23 पंचायतों के 42 विद्यालयों में केंद्रीकृत किचन से मिल रहे मध्याह्न भोजन का सर्वेक्षण किया था। सर्वेक्षण में सभी विद्यालयों के छात्रों ने कहा था कि पहले जो विद्यालय में ही रसोईये द्वारा मध्याह्न भोजन बनता था, उसकी गुणवत्ता व स्वाद केंद्रीकृत किचन से मिल रहे भोजन से बेहतर था। लक्ष्मण तमाओय ने बताया कि सर्वे में यह बात भी सामने आई कि अभी की तुलना में बच्चे पहले ज़्यादा खाते थे, जब विद्यालय में ही खाना बनता था। अब खराब गुणवत्ता और स्वाद पसंद ना आने के कारण बच्चों द्वारा भोजन फेंकना आम बात हो गयी है। मंच की हेलेन सुंडी ने कहा केंद्रीकृत किचन से आ रहे भोजन में कई बार मरी छिपकली, बीड़ी, सुई और मकड़ी पाई गए हैं। डोबरो बारी ने उजागर किया कि अब अनेक विद्यालयों में बच्चो को नियमित रूप से दो अंडा प्रति सप्ताह मिलना बंद हो गया है क्योंकि अन्नामृत फ़ाउंडेशन अंडा नहीं देती है और अब विद्यालयों के पास अंडा सीझाने का साधन नहीं है. इस रिपोर्ट को उपायुक्त को दिया गया था जिसके बाद एक जांच समिति बनाकर मामले को ठन्डे बसते में डाल दिया गया. रसोईया आशा सुंडी ने कहा कि केंद्रीकृत किचन के कारण आने वाले दिनो में रसोइयाओं, जो गाँव की सबसे वंचित वर्ग से होती हैं, की नौकरी समाप्त हो सकती है। सामाजिक कार्यकर्ता बिरसा तिऊ ने कहा इस व्यवस्था से स्थानीय आजीविका पर भी बुरा असर पड़ा है। पहले गाँव व स्थानीय हाट से ही किसानों से मौसम के अनुसार साग-सब्जी खरीद के विद्यालय में मध्याह्न भोजन बनाया जाता था। सामाजिक कार्यकर्ता रेयांस समद ने कहा कि संस्था बिना प्याज़, लहसन व अंडा के भोजन खिलाकर बच्चो, खास कर के आदिवासी बच्चो, पर एक खास धार्मिक सोच थोप रही है जो संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है। मंच कार्यकर्ता सिराज ने कहा कि RTI से हाल में मंच को पता चला है कि अन्नमृत फ़ाउंडेशन को यह ठेका रघुबर दास सरकार के कार्यकाल में दिया गया था. साथ ही, मध्याह्न भोजन की ज़िला स्तरीय निगरानी समिति, जिसकी अध्यक्षता उपायुक्त करते हैं, के लगभग हर मासिक बैठक में केंद्रीकृत किचन के ख़राब भोजन के विषय में आ रही शिकायतों पर चर्चा हुई है. उपायुक्त द्वारा गठित कई जांच दलों व कई विद्यालयों के अध्यापकों ने भी केंद्रीकृत किचन द्वारा दिए जा रहे खाने की ख़राब गुणवत्ता, बेस्वाद, विलम्ब से पहुंचना आदि पर लिखित शिकायत व रिपोर्ट दिया है.धरने में उपस्थित लोगों ने कहा कि लगातार शिकायतों के बावज़ूद इस व्यवस्था को बंद न करना दर्शाता है कि इस धर्म-आधारित संस्था को मिले ठेके से प्रशासन को फाएदा पहुँच रहा है और आदिवासियों पर विशेष धर्म थोपने की साजिश है. अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने बताया कि पिछले 10 सालों में केंद्र सरकार ने मध्याह्न भोजन का बजट कम किया है। यह दुख की बात है कि अब मध्याह्न भोजन में अन्नामृत संस्था द्वारा सात्विक भोजन के नाम पर बच्चो को अंधविश्वास आधारित खाना दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब बच्चे खाना नही पसंद नही कर रहा है, तो इन पर अपना खाना थोपने का अन्नामृत फाउंडेशन का क्या उद्देश्य है।
धरने में एक थाली में लहसन, प्याज़, साग, अंडा और दाल रखा गया था सरकार और अन्नाम्रित फाउंडेशन के लिए सन्देश के रूप में. धरने के दौरान केंद्रीकृत किचन के विरुद्ध नारा दिया गया और पर्चे बांटे गए। धरने के अंत में उपायुक्त को मांग पत्र देकर मांग किया गया कि तुरंत ज़िले के चारो प्रखंडों में मध्याह्न भोजन में केंद्रीकृत किचन व्यवस्था को बंद कर पूर्व की तरह विद्यालय में ही खाना बनाने की व्यवस्था को लागू की जाए। आने वाले दिनों में किसी भी संस्था / कंपनी को मध्याह्न भोजन बनाने का ठेका न दिया जाए और रसोईया व्यवस्था को ही सुदृढ़ किया जाए। झारखंड पूर्णोत्थान अभियान ने भी मांग का समर्थन किया और सभी स्थानीय विधायकों को अपील किया कि वे जल्द इसे रद्द करवाए। धरना में अमृत माझी, हरीश सिंकू, जोंगा सुंडी, जयंती मेलगंडी, लालमती देवी, लक्ष्मी सवैया, मानकी तुबिद, प्रमिला देवी, शीला बानरा, सन्नी सिंकू आदि समेत कई अन्य वक्ताओं ने अपनी बता रखी।

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