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रुसवा…


हर रोज तुम मुझे रुसवा न करो
ऐसे हम से बेवफ़ाई सदा न करो

अर्ज की थी अपनी मोहब्बत की
हर रोज दिल में आगाज न करो

हर शिकवे गिले अब दूर भी करो
न कुछ पूछते हो न कुछ कहते हो

दिल में छुपा कर दर्द गहरा न करो
जमाने में रूसवाई सारे आम न करो

चुपके से बुला कर खामोशी से यूं
खुद को आजाद,मुझे बर्बाद ना करो
हर रोज तुम मुझे रुसवा न करो

रचनाकार
मरियम रामला
ढाका बांग्लादेश

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