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युद्ध की आग बुझाओ तुम
युद्ध की आग बुझाओ तुम,
इससे सब कुछ हो रहा नष्ट।
बंदूकें की आवाज से थर्राता,
धरती का हर एक एक कण।
खून से लथपथ हो रही मिट्टी,
घर-बार भी सब हो रहे राख।
युद्ध की ज्वाला में जल रहा,
सपूत देश का आज मर रहा।
युद्ध के इन खंडहरों में दफन,
बहुत सी माँओं के सुहाग हुए।
जिंदगी जीना मुश्किल हो रहा,
शहर के मंजर भी वीरान हुए।
अपने ही लोगों से यह लड़ाई,
भाईचारे का नाश है कर रही।
आतंक की फैलती बर्बादी से,
बदहाल लोगों की जिंदगानी।
युद्ध की ये आग बुझाओ तुम,
शांति का दीप जला ओ तुम।
युद्ध के दीवाने रुक भी जाओ,
औरों की ज़िंदगी मत खाओ।
सुमन मीना (अदिति), दिल्ली