मैं ढूंढ रही हूं एक ऐसा दीया
मैं ढूंढ रही हूं एक ऐसा दीया
जो कभी अंधेरे से हार नहीं मानता
वह जगमगाता उन अंधेरी बस्तियों में
जहां सरकारी योजनाओं का
सूरज
बट जाता है पहुंचने से पहले
कई हिस्सों में
जहां पर देश की सुरक्षा में
तैनात जवानों के
तूटे हुए हैं रोशनदान
आज भी जंगलों के बीचो-बीच
तैनात है न सिर्फ हमारी सुरक्षा में
बल्कि सुरक्षित रहे पूंजीपतियों
और नेताओं के बड़े-बड़े घर
टूटे हुए रोशनदान से मुंह चिढ़ाते
सांप और बिच्छू कहते
“हमसे भी अधिक
जहरीले कुछ लोग हैं
तुम्हारे समाज में”
मैं ढूंढ रही हूं एक ऐसा दीया
जो रोशनी भर दे
झुर्रियों वाले चेहरे के
मोतियाबिंद वाली आंखों में
वह भरे हमारे भीतर ज्ञान
की रोशनी को
और मेरे राम को राम ही रहने दे
सीख ले हम भी त्याग रूपी बाती से
एकता के दीप को जलाना
और सांप्रदायिकता के अंधेरे को मिटाना
मैं ढूंढ रही हूं एक ऐसा दीया
जो ढूंढे मेरे भीतर से एक ऐसी गृह लक्ष्मी को
जिसे बाजारवाद नहीं छू सके
वह नहीं सैट करें
धनतेरस पर खरीदे गए सोने के सिक्के से
अपने प्रेम का पैरामीटर
हां, मुझे मिला एक विशिष्ट दीया
शहीद की पत्नी के
द्वारा जलाया गया
जिसने देश के सभी दीयों
की सलामती के लिए
बुझाना स्वीकार किया
अपना दीया
वह जला रही है पुनः
अपने उम्मीद का दीया
अपने नन्हें बाती को
मजबूत बना रही है
क्योंकि भेजना चाहती है
वह फिर
मां भारती की आरती
के लिए एक दीया
उसी उम्मीद के लौ से
मैंने भी जलाया अपने
भीतर एक दीया
की कोई आवाज मौन और गौण
ना हो पाए
क्योंकि मैंनें भी चुना है
चुनौती वाली बाती का
लेखनी वाला दीया
सोनम झा
देवघर झारखंड