मैं का अस्तित्व
“मैं का अस्तित्व ”
मैं क्या अस्तित्व समाहित
परमेश्वर सदा जो मन में !
नही रुप ना कोई काया
यह है ब्रह्मांड गहन में !
अजर अमर सदा है माने
समझे मानुष मैं है तन में !
मैं का गर्व है जो भटकन
मैं तो रहे सदा मस्तिष्क में !
फिर इसको समझे अहम्
जो नही है वस्तु औ धन में !
मैं अविनाशी है अभेद सदा
फिर मैं क्यों डरे गहन में !
मैं खड़ा होता है सम्मुख
दुःख पीड़ा औ चिंतन में !
बंद रहता है हृदय चक्षु
समझे ना मैं सदा परम में !
मैं मेरे अंदर बन ज्योति
राह दिखाये जो तमस में !
मैं ही हूँ घेरता घोर अंधेरा
मैं का थाह ना मिले मन में !
मैं ही जीता मैं ही हारता
मैं करता द्वंद्व भाव अगन में !
मैं की व्याख्या कर ना पाऊँ
हे कृष्ण तुम्ही बताओ मन में !
हर कर्म भाव अर्पित प्रभु जी
सदा मैं तुम्हारे चरणन में ।।
डॉ आशा गुप्ता “श्रेया”
(स्वाधिकार सुरक्षित)
स्त्रीरोग विशेषज्ञ, कवयित्री साहित्यकार जमशेदपुर झारखंड