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बचपन की शरारतें


जब बचपन की शरारतों को याद करती हूं,
में खिलौनों की दुनिया में खो जाती हूं
चॉकलेट की ज़िद और माँ की डाँट,
उन्हें पलों में बस खो जाती हूं।

मिट्टी के किले बनाना और उनको तोड़ना याद करती हूं
बारिश की बूंदो में भीगना नाव बनाना याद करती हूं
भाई बहनों के संग लड़ना झगड़ना याद करती हूं
हर पल बचपन की यादों को याद करती हूं।

जीवन में संघर्षों का सामना करना अब हर रोज करती हूं
तब मैं बचपन को याद करती हूं
सखी सहेलियां के संग घूमना याद करती हूं
कहां हे वह बचपन प्यारा जिसे अब मैं हर पल याद करती हूं।

साक्षी जैन कालापीपल मध्य प्रदेश स्वरचित व मौलिक रचना

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