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पूंजीगत व्यय में वृद्धि से अगले दशक में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा

सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान वित्त वर्ष 2024 में 14 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2034 तक 21 प्रतिशत हो जाएगा

जमशेदपुर। भारत का मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र अगले दशक में पर्याप्त वृद्धि के लिए तैयार है। वित्त वर्ष 2034 तक विनिर्माण क्षेत्र का तीन गुना विस्तार होने का अनुमान है । चालू वित्त वर्ष 2024 में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का बाजार मूल्य 459 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 1.66 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है । यह वृद्धि पिछले दशक में हुई 175 बिलियन डॉलर की औसत वृद्धि से अधिक है । इसके अतिरिक्त, कम माल ढुलाई लागत और बेहतर बुनियादी ढांचे के कारण सकल घरेलू उत्पाद में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान वित्त वर्ष 2024 में 14 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2034 तक 21 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है ।

बुनियादी ढांचे में निवेश वित्त वर्ष 2024 में सकल घरेलू उत्पाद के 33 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2029 तक 36 प्रतिशत हो जाएगा, जिससे अर्थव्यवस्था में विकास की कई लहरें देखने को मिलेंगी । आरबीआई सर्वेक्षण के अनुसार, उद्योग क्षमता उपयोग पहले ही 75 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। देश के शीर्ष तीन इस्पात उत्पादक 90 प्रतिशत से अधिक क्षमता पर काम कर रहे हैं । आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वृद्धि स्टील, सीमेंट और एल्युमीनियम जैसी वस्तुओं की मांग में वृद्धि का संकेत देती है और इसके पीछे मुख्य वजह बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में आई तेजी है ।

हालाँकि, मुद्रास्फीति में वृद्धि या परियोजना में देरी जैसी बाधाओं से बचने के लिए, इन क्षेत्रों के लिए अपनी क्षमता बढ़ाना महत्वपूर्ण है । विशेष रूप से, डेटा सेंटर, विनिर्माण प्रोत्साहन, इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने और एयर कंडीशनर के बढ़ते उपयोग जैसे कारकों ने बिजली की मांग को कई गुना बढ़ा दिया है, इस प्रकार बिजली क्षेत्र को बढ़ती पूंजी व्यय आवश्यकताओं का सामना करना पड़ रहा है ।

डीएसपी फंडने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि भारत की उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना में महत्वपूर्ण पूंजी व्यय क्षमता है । वित्तीय वर्ष 2024 और 2026 के बीच विभिन्न विनिर्माण क्षेत्रों में 39 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक खर्च होने का अनुमान है । वर्तमान पीएलआई निवेश फार्मास्यूटिकल्स, मोबाइल फोन और सौर पीवी मॉड्यूल विनिर्माण पर केंद्रित है, जबकि सेमीकंडक्टर, विशेष इस्पात, कपड़ा और ऑटोमोबाइल विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में भी वित्त वर्ष 2025 में पूंजी निवेश में वृद्धि देखी जाएगी । ऊर्जा, रक्षा, जल और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में वृद्धि मुख्य रूप से सरकारी नीतियों के कारण नहीं बल्कि मांग में वृद्धि के कारण देखी जा रही है ।

जहां भारत में कुल सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 14 प्रतिशत के आसपास है, वहीं अन्य एशियाई देशों मे यह योगदान 20 प्रतिशत से अधिक है । हालाँकि, हम विनिर्माण क्षेत्र को लेकर सकारात्मक हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि अधिकांश विनिर्माण क्षेत्र विकास के शिखर पर हैं और मांग में उल्लेखनीय वृद्धि से कंपनियों के राजस्व में पर्याप्त वृद्धि होगी । हम सभ इस बदलाव का अनुभव कर रहे हैं क्योंकि आपूर्ति में गति नहीं रहने के कारण बढ़ी हुई उपभोक्ता मांग को पूरा करने के लिए कंपनियां क्षमता बढ़ा रही हैं ।

डीएसपी म्यूचुअल फंड के फंड मैनेजर चरणजीत सिंह ने कहा, ‘पिछले 5 वर्षों में, सरकार ने बड़े सुधारों और नीतिगत बदलावों पर ध्यान केंद्रित किया है । हमारा मानना है कि वित्त वर्ष 2025-30 कार्यान्वयन की अवधि होगी । साथ ही, निजी पूंजी का उपयोग, जिसमें लंबे समय से ज्यादा वृद्धि नहीं देखी गई है, वह बढ़ती रहेगी । उपयोग के स्तर में वृद्धि, मजबूत कॉर्पोरेट बैलेंस शीट और राजनीतिक स्थिरता जैसे प्रमुख कारक वित्त वर्ष 2026 से निजी पूंजी के पुनरुद्धार में तेजी ला सकते हैं ।’

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