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“धरती बदल रही है “
वो जमाना भी क्या खूब था,
हर तरफ पेड़ -पौधो से हरियाली थी ,
जैसे सागर की भी खुशबू हवा में बहते हुए,
चारो ओर फैल रही थी।।
लोगो की भूख प्यास कुछ ज्यादा ही थी,
हर वादी काट के घर, बंगला, महल, आशियाना सजा रहे थे।
अब देख इंसान को सब कुछ मिल गया,
पर अब दम गुट रहा है,
मिट्टी से मिट्टी को बदल रहा,
सारा आसमान एक महल है
इस में जग झिलमिल सज रहा था,
अंदर दम घुट रहा,
“कोविड” की वजह से इंसान अब पेड़-पौधे माँग रहा था।।
ऐसे ही अगर सब काट कर तोड़ कर महल बनाने लग जाए,
महल तो रह जाएगा पर रहने के लिए कोई ना रहेगा ।।
मरियम रामला ढाका बांग्लादेश