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हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से फटकार सुनने के बाद भी अपनी चाल बदलने के लिए तैयार नहीं हेमंत सरकार ;रघुवर दास

झारखंड की हेमंत सरकार न केवल मगरूर है, बेशर्म भी है। इस सरकार की जनता की अदालत में ही नहीं, न्यायिक अदालतों में भी बार-बार फजीहत हो रही है, लेकिन सरकार इस सरकार को सदाबहार एवरग्रीन साबित करने में लगे हैं। इसे ही नागपुर में थेथर, भोजपुरी में बेहया और हिंदी में बेशर्म कहते हैं। लोगराज में लोकलाज छोड़कर हेमंत सरकार अपने निकम्मेपन पर इतरा रही है और हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से फटकार सुनने के बाद भी अपनी चाल बदलने के लिए तैयार नहीं है। उसकी सारी ऊर्जा विपक्षी नेताओं पर फर्जी मुकदमे लादने, उन्हें फंसाने और कायदा कानून को ठेंगा दिखाने में खर्च हो रही है। अभी 2 सितंबर को ही झारखंड उच्च न्यायलय ने 2 मामले की सुनवाई करते हुए सरकार के बारे में जो कुछ कहा वह किसी पानीदार सरकार को बेपानी करने के लिए काफी है। झारखंड के मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि सरकारी योजनाए फेल हो गई हैं, गांव तथा गरीबों तक ना राशन पहुंच रहा है ना पीने का पानी, न बिजली ने गैस चूल्हा। गांवों को भुखमरी की समस्या ने घेर लिया है। इस बारे में सरकार 2 माह में जवाब दें। हाईकोर्ट भूख से एक बिरहोर की मौत के मामले की सुनवाई कर रहा एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 2 सितंबर को ही कहा कि यदि जेपीएससी संवैधानिक संस्था नहीं होती तो उसे बंद करने का आदेश जारी कर देते। कोर्ट का मानना है कि झारखंड लोक सेवा आयोग और कर्मचारी चयन आयोग की बदहाली के कारण भर्तियां नहीं हो रही है। अदालत ने इस मामले में भी शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।

साहिबगंज की महिला दारोगा रूपा तिर्की की मौत के मामले में तो सरकार की जितनी फजीहत हुई व कल्पनातीत है। रूपा के परिजनों, आदिवासी समाज भाजपा समेत अन्य विपक्षी दल लगातार कह रहे थे कि इस मामले की सीबीआई जांच कराई जाये। लेकिन सरकार तैयार नहीं थी। सरकार ने सीबीआई जांच टालने की नियत से हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन कर दिया, ताकि बना ले। लेकिन यह बला अब सरकार के गले की फांस बन सकती है। झारखंड हाई कोर्ट ने रुपा तिर्की मामले की जांच का आदेश देते हुए जो कहा, वह एक बड़ा संकेत है। रूपा तिर्की का बिसरा भी सुरक्षित नहीं रखा गया है, रूपा के परिजनों पर दबाव बनाया गया और प्रलोभन दिया गया। इस बाबत फोन कॉल का विवरण मौजूद हैं। इस मामले में सत्ता पक्ष के करीबी लोगों का नाम भी सामने आ रहे हैं। इस मामले का एक पहलू यह भी है कि इसकी सीबीआई जांच रुकवाने के चक्कर में महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता ने अदालत की अवमानना कर दी। अब उन पर अलग से मुकदमा चलेगा।

3 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के वर्तमान डीजीपी नीरज सिन्हा के नियुक्ति मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को फटकार लगाई। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जब पहले ही नोटिस दिया गया था, तब नियुक्ति क्यों की गई। इस मामले में डीजीपी को भी नोटिस भेजकर जवाब मांगा गया है। दरअसल केएन चौबे को डीजीपी पद से जिस तरह हटाया गया व सुप्रीम कोर्ट के आदेश की तौहीन थी। हेमंत सरकार तो किसी भी बेज्जती करने में संकोच नहीं करती है। उसके बाद एक प्रभारी डीजीपी लाया गया वह भी नियम के विरुद्ध उससे भी मनोरथ पूरा नहीं हुआ, तो बिना नया पैनल भेजें नीरज सिन्हा को डीजीपी बना दिया गया और उन्हें 2 साल का फिक्स टाइम भी दे दिया गया। यह देश का अपनी तरह का अनोखा मामला है। जब मुख्यमंत्री अनोखेलाल है तो काम भी अनोखा ही करेंगे। अब सुप्रीम कोर्ट ने गर्दन पकड़ ली है।

इससे पहले 30 जुलाई को भी सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीश उत्तम आनंद मौत के मामले में झारखंड सरकार की खूब फजीहत की थी। मुख्य सचिव व डीजीपी से जवाब मांगा गया था। 5 जुलाई को झारखंड हाईकोर्ट ने पंचायत सचिवों नियुक्ति मामले में न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं होने पर राज्य सरकार से पूछा था कि आदेश की अवमानना का मामला क्यों नहीं चलाया जाए। ऐसे अनेकों मामले हैं जिन पर अदालत की टिप्पणियों, आदेशों, फैसलों के उल्लंघन में झारखंड सरकार का बदरंग चेहरा देखा जा सकता है। लेकिन सरकार अब भी अपना चेहरा साफ करने के प्रयास के बदले और कालिख पुतवाने का इंतजाम कर चुकी है। अभी चैता बेदिया के बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर हाईकोर्ट का फैसला आना बाकी है। इस मामले में सरकार ने एक नाबालिक लड़की को उसके गार्जियन को बताए बिना उठवा लिया।

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