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देवताओं के वश में नहीं था दुष्टों का संहार, माता ने दानवों से पृथ्वी व स्वर्ग को कराया मुक्त- विजय गुरूजी

बिष्टुपुर श्रीराम मन्दिर में श्रीमदद्देवी भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का पांचवां दिन

जमशेदपुर। बिष्टुपुर श्रीराम मन्दिर में चल रहे श्री अम्बा यज्ञ नव कुण्डीय श्री सहस्त्रचंडी महायज्ञ एवं श्रीमदद्देवी भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के पांचवें दिन रविवार को पूज्यनीय आचार्य विजय गुरूजी महाराज ने अपनी सुमधुर वाणी से महिषासुर मर्दिनी चरित्र, वृत्रासुर संहार, राजा नहुष की कथा संवाद का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि मां दुर्गा ने जन कल्याण के लिए असंख्य राक्षसों का संहार किया है। जो लोग मां की पूजा अर्चना प्रतिदिन करते हैं उनके काम, क्रोध, मोह आदि भीतरी विकार दूर हो जाते हैं।

मां आदिशक्ति ने दुर्गा के रूप में अवतार लिया था। उनका यह अवतार दानवों के संहार के लिए हुआ था। माता को जब भक्तों ने पुकारा तो माता ने दुष्टों के संहार के लिए कई रूप धारण किए और दुष्टों का संहार किया। उन्होंने ऐसे दानवों से पृथ्वी व स्वर्ग को मुक्त कराया, जिनका संहार करना देवताओं के वश में नहीं था।
मां दुर्गा द्वारा राक्षसों के वध की कथा सुन भक्तगण हर्षित हो उठे। हर कोई मां दुर्गा के जयकारे लगाता हुआ उनकी अराधना में लीन दिखाई दिया। कथा के दौरान झांकियांे ने श्रोताओं को आनंदित किया। पांचवें दिन रविवार को भी 37 यजमानों द्धारा श्री अम्बा यज्ञ नव कुण्डात्मक सहस्त्रचंडी महायज्ञ किया गया। उन्होने कहा कि जीवन में भागवत कथा सुनने का सौभाग्य मिलना बड़ा दुर्लभ है। जब भी हमें यह सुअवसर मिले, इसका सदुपयोग करना चाहिए। श्रीविद्या शक्तिसर्वस्वम् चेन्नई के नेतृत्व में टाटानगर ईकाई द्धारा लौहनगरी में दूसरी बार आयोजित हो रहे इस धार्मिक उत्सव कार्यक्रम में गुरूजी सोमवार 2 जनवरी को हैहय एवं सूर्यवंश का वर्णन, शक्तिपीठों की कथा संवाद की व्याख्या करेंगें।
व्यास पीठ से वृत्रासुर संहार का प्रसंग सुनाते हए गुरूजी ने कहा कि इन्द्र ने वृत्रासुर को युद्ध के लिए ललकारा। युद्ध में इन्द्र ने वृत्रासुर पर वज्र का प्रहार किया जिससे टकराकर वृत्रासुर का शरीर रेत की तरह बिखर गया। देवताओं का फिर से देवलोक पर अधिकार हो गया और संसार में धर्म का राज कायम हुआ।
राजा नहुष की कथा का वर्णन करते हुए गुरूजी ने आगे कहा कि नहुष प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा पुरुरवा का पौत्र था। वृत्तासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा और वे इस महादोष के कारण स्वर्ग छोड़कर किसी अज्ञात स्थान में जा छुपे। इन्द्रासन खाली न रहने पाये इसलिये देवताओं ने मिलकर पृथ्वी के धर्मात्मा राजा नहुष को इन्द्र के पद पर आसीन कर दिया। नहुष अब समस्त देवता, ऋषि और गन्धर्वों से शक्ति प्राप्त कर स्वर्ग का भोग करने लगे। अकस्मात् एक दिन उनकी दृष्टि इन्द्र की साध्वी पत्नी शची पर पड़ी। शची को देखते ही वे कामान्ध हो उठे और उसे प्राप्त करने का हर सम्भव प्रयत्न करने लगे।

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