दिव्यांगों के अधिकार के प्रति जागरूकता करने के लिए राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित
दिव्यांगों की कार्य क्षमता में कमी नहीं होती है : प्राचार्या
जमशेदपुर: तीन दिसम्बर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांग दिवस मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दिव्यांगों के प्रति व्यवहार में परिवर्तन लाना और उनके अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाना है. इस खास दिवस पर द ग्रैजुएट स्कूल कॉलेज फॉर वूमेन, जमशेदपुर के बीएड विभाग और श्रुति दिव्यांग अधिकार केंद्र, कोलकाता के संयुक्त रूप से दिव्यांगों के अधिकार के प्रति जागरूकता करने के लिए राष्ट्रीय वेबीनार ऑनलाइन जूम ऐप पर आयोजन किया गया. इस राष्ट्रीय वेबीनार में महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ मुकुल खंडेलवाल ने कहा कि दिव्यांगों की कार्य क्षमता में कमी नहीं होती है. उन्हें माता-पिता तथा गुरु का सहयोग जरूरी है. मैंने अपने जीवन में कई उदाहरण देखे हैं और अभी वे लोग उच्च पद पर आसीन हैं. श्रुति दिव्यांगता अधिकार केंद्र, कोलकाता के संस्थापक संपा सेनगुप्ता ने दिव्यांगों के अधिकार के बारे में विस्तार से चर्चा किया. सीआरईए नई दिल्ली के स्मूर्ति सुधा ने कहा कि दिव्यांगजन की समस्याएं तथा उनके निराकरण को विस्तार से बताया. बीएड के विभागाध्यक्ष डॉ विशेश्वर यादव ने कहा कि दिव्यांग होना पाप नहीं है. दिव्यांग शरीर से भले ही कमजोर हो, लेकिन मनोबल से कमजोर नहीं होता है दिव्यांग जनों को उच्च शिक्षा में आरक्षण की सही उपयोग नहीं होने पर चिंता व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि जब तक राजनीतिक भागीदारी दिव्यांगों को नहीं मिलेगी तब तक उनका विकास संभव नहीं है. बीएड के कोऑर्डिनेटर डॉ मुकुल भेंगराज ने कहा कि हमारे झारखंड राज्य में भी कई दिव्यांगजन है जो अपनी प्रतिभा से सबको चकित करते हुए गर्व के कारण बने हैं. और अपनी कमजोरियों को ताकत मान कर उच्च पदों पर आसीन है और अपने दिए गए कार्यों को निष्ठा एवं इमानदारी पूर्वक से करते हैं. शैक्षिक संस्थानों में दिव्यांगों के लिए बहुत कम सुविधाएं हैं. जिससे चाह कर भी दिव्यांग छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं. सरकार को चाहिए कि महिलाओं के लिए छात्रावास, आवागमन के साधन एवं छात्रवृत्ति की व्यवस्था के साथ-साथ, शिक्षा निशुल्क कर दिया जाए. युवा संस्था के संस्थापक बरनाली चक्रवर्ती ने कहा कि दिव्यांगों को घर से निकलने पर घरवाले बहुत पाबंदी लगाते हैं और दिव्यांगों को घर में कैद रहने के लिए मजबूर करते हैं. उन्हें भी सामान्य मनुष्य जैसा मन करता है, समाज को चाहिए उन्हें सहयोग करें. और उनके साथ समय दें. धन्यवाद ज्ञापन सुदेशना चक्रवर्ती ने दिया.