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जिंदगी चाय जैसी है
पतीली को गैस मे चढ़ाते हुए मैंने कहा “”ये है जिंदगी इसमें डालना है ख्वाहिशों वाला पानी, जब ख्वाहिशें (पानी) उबलने लगे तो उसमें डाला जाता है सब्र यानी चाय पत्ति, जब सब्र का रंग यानी पानी मे चाय का रंग दिखने लगता है तो उसमे डाला जाता है थोड़ा सा इंतजार…..!!
‘यानी इलायची अदरक और कालीमिर्च ‘ इंतजार के बाद डाली जाती है थोड़ी सी मोहब्बत यानी कि दूध, सबको मिला कर अच्छे से जिंदगी(पतीले) मे घोला जाता है और सबसे आखिर मे डलती है ख़ुशी यानी चीनी खुशी ना ज्यादा, ना कम क्योंकि ज्यादा हुई तो हज़म नहीं होगी और कम हुई तो मज़ा नहीं आएगा!!
तब जा कर कहीं बनती है चाय जिसकी तलब इंसान को यहा तक खींच लाता है…..!!
सुधा मिश्रा जमशेदपुर झारखंड