जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र : चुनाव विश्लेषण
प्रचार का जोर नहीं , कहीं भी कोई शोर नहीं
साकची चौराहा , जमशेदपुर से जिज्ञासु.
प्रचार गाड़ियां नदारद हैं . चौक चौराहों पर इक्का दुक्का बैनर पोस्टर को छोड़कर कहीं कुछ भी नहीं दिख रहा है . मोदी के कट आउट वाले पोस्टर्स जरूर नज़र आ रहे हैं . सड़कों पर आने जाने वाले लोग और वाहनों में सवार यात्री मोदी की गारंटी को निहार रहे हैं . चुनाव प्रचार काफी धीमा है . जनसम्पर्क बैठकों और सभागार सभाओं को तरजीह दिया जा रहा है . वोटर खामोश है , कार्यकर्ताओं में भी जोश की कमी दिख रही है . वोटिंग में अभी नौ दिन बाकि है .
इंडिया और एनडीए दोनों ही गठबंधनों के कार्यकर्त्ता चुनावी मैदान में प्रमुखता से सक्रिय नहीं दिख रहे हैं . अब तक किसी bhi विधानसभा क्षेत्र में प्रचार गाड़ी और भोंपू की आवाज़ नहीं गूंजती दिख रही है . चौक चौराहों pa पर सिर्फ चुनाव आयोग का प्रचार अभियान नज़र आ रहा है जिसमें वोटर्स से वोट देने जाने की अपील की गई है..
एक वह भी चुनाव था
मुझे १९९६ का वह चुनाव अच्छी तरह याद है जब छोटे परदे के श्रीकृष्ण बने नितीश भारद्वाज जमशेदपुर से भाजपा के प्रत्याशी बनाये गए थे . जनता दल ने अपने हैवी वेट इन्दर सिंह नामधारी को चुनाव मैदान में उतारा था . जब तक भारद्वाज जमशेदपुर नहीं पहुंचे थे नामधारी का पलड़ा भरी था . भारद्वाज के जमशेदपुर में कदम रखते ही माहौल बदल गया .
मैंने की थी रिपोर्टिंग
तब मैं ताज़ा ताज़ा एक्टिविज्म को छोड़कर जर्नलिज्म में आया था . इस्पात मेल के लिए पूरे जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र में घूम घूमकर जायज़ा लेने का मौका मिला था . मेरे मित्र , कार्यकर्त्ता और पत्रकार कुलविंदर जी तब नामधारी जी के मीडिया सलाहकार थे . दोनों ही प्रत्याशिओं को नज़दीकी से कवर किया था . चुनाव हार जाने के बाद नामधारी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था की भगवन कृष्णा के सामने मेरी क्या औकात थी . हालाँकि , चुनाव जितने के बाद भारद्वाज जमशेदपुर एक बार भी नहं आये . आज प्रभात खबर में एक फ़्लैश बैक रिपोर्ट पढ़ी तो यादें ताज़ा हो गयीं .