गुजरता साल, बदलते दिन, बदलते रिश्ते”
सौरभ कुमार जादूगोड़ा
हर मिनट पर अपनी राय बदलते लोग, कहते है देखो साल बदल गया, खैर लोगों की अपनी अपनी नजरिया है. लोग साल को बदलता देख रहे है,
हमने साल भर लोगों को बदलते देखा है. नया साल नया है क्या इसमें? सब वही, वही घर, वही रोज का काम, वही माहौल, वही लोग, वही अखबार, नया साल तो आता है हर 365 दिन बाद, बस एक रात के बाद एक सवेरा और इससे ज़्यादा क्या बदलता है? सोच वही, व्यवहार वही,गम वहीं आंसू वही, रिश्ते वही एहसास वही, खाना वही, पीना वही, सोना वही, रोना वही, हम कब बदलेंगे या हमारी सोच? लोग हर बदलते नए साल के साथ यह उम्मीद लगाते है, की यह आने वाला नया साल, शायद कुछ नई उम्मीदें लेकर आएगा। जो गुजरा हुआ वक्त था, लोग अक्सर यह भूल जाते है, की ये बदलता हुआ साल सिर्फ तारीखे बदलता है, हमारा वक्त, हमें खुद बदलना पड़ता है। शायद स्वर्गीय इंदौरी साहब ने ठीक ही लिखा था।”ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था।”अखबारों के पन्ने बीतते साल की यादों से भरे पड़े है। जब पुराने अखबारों को देखता हूँ तो महसूस करता हूं। एक ख्वाब जो गुजरने वाला है पिछले बरस का, आतंक का, घपलों का, जुलूसों का, हवस का,किसी के कहानियों का, किसी के यादों का, सिलसिला भी खत्म नहीं हुआ है। नए साल को आने में अभी 3 दिन बाकी है। आईए देखते हैं। कि कितना कुछ खाली रह गया इन पन्नों में और कितना कुछ लिखा जाना शेष 2024 के कैलेंडर की तारीखों में।
शायद नए साल की नई सवेरा के साथ लोगों की सोच में परिवर्तन आए। तो शायद लिखने और पढ़ने वाले दोनों का भला हो जाए।