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खोइछा अपनी संस्कृति और संस्कार

सौरव कुमार
जादूगोड़ा। बहुत गर्व है हम भारतीय हैं यहां की रीति रिवाज पूरी दुनिया में सबसे अनूठी है आशा है हर भारतीय अपनी संस्कृति से सदेव जुड़ा रहे, कोईछा, खोईछा, ओली, ओटी ,वटभरण देश प्रदेश के अनुसार अलग-अलग नाम है पर इसमें चावल, हल्दी,पंचमेवा,फल ,रुपये ये मुख्य होता है बेटी और मायका इसके बीन अधूरा है, बचपन में जब मां अपने मायके से लौटती थी तो नानी उसके आंचल में चावल दूभ हल्दी पैसे के साथ अपना स्नेह बांध देती थी। कितनी सदियों पुरानी है खोंईछा की ये रीत… और कितना कुछ समेट रखा है खोंईछा शब्द, खोईंछा शब्द सुनते ही न जाने कितनी भावनाएं और और कितना नेह जुड़ जाता है लोगों के मन में। क्यूंकि खोंईछा वह अनमोल उपहार है जो ससुराल जाते समय विदाई से ठीक पहले मां, भाभी या कोई अन्य सुहागिन महिला ससुराल जाती हुई बेटी केआंचल में देती हैं। प्रथा हमारे जीवन की डोर है जो रिश्तो को जोड कर रखती हैं, जिसके साथ हमारे संस्कार ,हमारा प्रेम, हमारी सभ्यता जूडी है, ईस वजह से ईनको सहेज कर रखना हमारा धर्म हैं,आधुनिकता में यह विखर न जाए ईस बात का ध्यान रखना होगा पुराने समय से ज्योतिष हमारे समाज का अभिन्न अंग रहा है। इसमें चावल चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। चन्द्रमा अर्थात मानसिक शांति… मां भी चन्द्रमा का रूप मानी जाती है ये चावल माँ द्वारा बेटी को दिया जाता था ताकि ससुराल में बेटी को किसी तरह का मानसिक कष्ट न हो , दूब से उसके जीवन में हरियाली बनी रहे , द्रव्य अर्थात लक्ष्मी…. बनी रहे । इसको देना अनिवार्य बना दिया गया । सदियों से ये हमारी परम्परा बनी हुई है। हमारे पूर्वजों द्वारा दी गई ये चीजें अनमोल है। खोंईछा का लेन-देन बहू-बेटियों तक ही सीमित नहीं है। जब माँ दुर्गा ,काली या कोई देवियों का आगमन होता है तो उनके विसर्जन के समय उन्हें भी खोंईछा दिया जाता है। सिंदूर से मांग भरते हैं। आलता (महावर) लगाते हैं,पान से गाल सेंकते हैं, मिठाई खिलाते हैं। दुर्गा मां या काली माँ की प्रतिमा के आँचल में चावल, हल्दी,दूब, रूपए आदि बहू-बेटियों के जैसे ही आज भी देते हैं। बंगाल में “सिंदूर खेला ” या दुग्गा मायेर बोरोन करना कहते हैं। आप किसी बेटी से पूछिए? उस बेटी को “खोइछा “शब्द सुनकर मां , मायका वो आंगन,सब आंखों के सामने आ जाएगा। मां जब खोइछा देती थी तो दोनों तरफ से आंसू टपकते थे,
यह चलन कहीं-कहीं तो भले ही पूर्व की तरह ही जारी है, लेकिन धीरे-धीरे लोग इसके महत्व को भूलते जा रहे हैं, जबकि खोंईछा में मिले हर एक चीज़ का गहरा महत्व है।

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