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कौन है कोलहान की क़द्दावर नेत्री गीता कोड़ा जिसने मोदी के तूफान को रोक पति और पूर्व पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को तबाही से बचा लिया था

चाईबासा। मौजूदा वक्त में झारखंड की सियासत में अभी सबसे ज्यादा चर्चा गीता कोड़ा की है, चाईबासा से कांग्रेस सांसद गीता ने बीजेपी का दामन थाम कर तगड़ा झटका लोकसभा चुनाव से पहले देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को दिया. हालांकि, इसकी पटकथा बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थी, क्योंकि अक्सर भाजपा में गीता के शामिल होने की अटकले और चर्चाए जोर पकड़ती थी. हालांकि, अब ये सच हो गया और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई हैं.

कौन है गीता कोड़ा ?

गीता ने सियासी सफर के पिछले पन्ने को पलटे तो इस महिला ने रानजीति के आखाड़े में बड़े-बड़ा सूरमा को भी चित करने से पीछे नहीं हटी . मोदी लहर के तूफान को भी थाम दिया और अपना वजूद कायम रखा . हालांकि, ये सच है कि गीता कोड़ा को अपने पति और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का सानिध्य सियासत में मिला. इसके चलते उनकी पकड़ कभी ढीली नहीं हुई औऱ आज एक मंजे हुए सियासतदांन की तरह राजनीति के अखाड़ें में जमी हुई हैं. मधुकोड़ा जब मुख्यमंत्री थे, तो उस वक्त तक एक गृहणी के तौर पर ही गीता कोड़ा थी और राजनीति से उनका उतना कोई वास्ता नहीं था.

गीता से पति मधुकोड़ा को मिली मदद

18 सितंबर 2006 से 27 अगस्त 2008 तक झारखंड के मुख्यमंत्री के तौर गीता के पति मधुकोड़ा थे, इस दरम्यान उन पर भ्रष्टाचार की तमाम तोहमते लगी थी और जेल भी जाना पड़ा था. उन पर कोयला खदानों के आवंटन के एवज में 4000 करोड़ रुपए के रिश्वत लेने के आरोप लगे. जिसके चलते 2017 में तीन साल की सजा और 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था.
मधुकोड़ा जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, तो काफी मुश्किलों के दौर से गुजर रहे थे. इस दरम्यान उनकी पत्नी गीता कोड़ा ने ही उनकी डूबते राजनीतिक करियर को सहरा दिया और खुद भी सियासत में पांव रखा .2009 में जय भारत समानता पार्टी से पहली बार विधायक बनीं और 2014 में फिर दुबारा विधायक चुनी गई . इसके बाद गीता ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार आगे बढ़ती गई . गीता के सियासी सफर से मधुकोड़ा को फायदा मिला, मुकदमों में उलझे मधु कोड़ा को इससे थोड़ी राहत मिली. हालांकि, अभी भी उन पर केस चल ही रहे हैं.

मोदी लहर में भी गीता ने लहराया था परचम

2014 में देश भर में छाए मोदी लहर में भी गीता को भी हार का सामना करना पड़ा . लेकिन, अपनी जबरदस्त छाप मतदाताओं के बीच छोड़ने से पीछे नहीं हटी . भाजपा के दिवगंत नेता लक्ष्मण गिलुवा से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था . लेकिन , वोट प्रतिशत की बात करें, तो गिलुवा को जहां 26 प्रतिशत मत मिले थे, तो गीता ने 18 फीसदी वोट हासिल किया था. हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव में गीता कोड़ा ने साबित किया कि कोल्हान में उनका कोई जोर नहीं है. गीता कांग्रेस की टिकट से लड़ते हुए भाजपा के लक्ष्मण गिलुवा को 72 हजार मतो से पटखनी दे ही दी और झारखंड में कांग्रेस की इकलौती सांसद भी बनीं. इससे भाजपा को भी भान हो गया था कि गीता कोड़ा को शिकस्त देना आसान नहीं है. कोल्हान भाजपा की कमजोर कड़ी रही है, क्योंकि छह विधानसभा सीट में एक में भी विधायक नहीं है. यहां पांच पर जेएमएम और एक विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. अब गीता कोड़ा के बीजेपी में शामिल होने से साफ है कि बीजेपी को फायदा मिलेगा. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने कोल्हान में कद्दावर नेता को अपने पाले में कर लिया है. अब देखना है कि सियासत को करीब से समझ रही गीता कोड़ा को इससे कितना फायदा होता है, और बीजेपी कोल्हान में जो सैंधमारी की है. उससे अपने मकसद में कितना कामयाब लोकसभा और विधानसभा चुनाव में होती है.

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