कीर्तन करने से शरीर ,आत्मा और मन तीनों पवित्र होता है
सामूहिक कीर्तन करने से शारीरिक शक्ति के साथ साथ मानसिक शक्ति भी एक ही भाव धारा में बहने लगती है
जमशेदपुर। आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से 1 प्रहर (3 घंटे )का “बाबा नाम केवलम” अखंड कीर्तन, 300 लोगों के बीच नारायण सेवा एवं 50 फलदार निशुल्क पौधा वितरण आनंद मार्ग जागृति गदरा में सम्पन्न हुआ
कीर्तन समाप्ति के बाद आनंद मार्ग के वरिष्ठ आचार्य प्रियतोषानंद अवधूत ने कहा कि कीर्तन का मतलब हुआ जोर-जोर से किसी का गुणगान करना या प्रशंसा करना ऐसे जोर से बोला जाए जो कि अन्य किसी दूसरे के कान में भी जाए “हरि “का कीर्तन जो”हरि “हैं अर्थात परम पुरुष हैं इन्हीं का कीर्तन करना है अपना कीर्तन नहीं कीर्तनिया सदा “हरि ” मनुष्य यदि मुंह से स्पष्ट भाषा में उच्चारण कर कीर्तन करता है उससे उसका मुख पवित्र होता है जीहां पवित्र होती है कान पवित्र होते हैं शरीर पवित्र होता है और इन सब के पवित्र होने के फलस्वरूप आत्मा भी पवित्र होती है कीर्तन के फल स्वरुप मनुष्य इतना पवित्र हो जाता है कि वह अनुभव करता है जैसे उसने कभी अभी-अभी गंगा स्नान किया हो भक्तों के लिए गंगा स्नान का अर्थ हुआ सदा कीर्तन यदि लोग मिल जुलकर कीर्तन करते हैं तब उन लोगों की मात्र शारीरिक शक्ति ही एकत्रित होती है ऐसी बात नहीं है उनकी मिलित मानस शक्ति भी एक ही भावधारा में एक ही परम पुरुष से प्रेरणा प्राप्त कर एक ही धारा में एक ही गति में बहती रहती है इसलिए मिलित जड़ शक्ति और मिलित मानसिक शक्ति इस पंचभौतिक जगत का दुख कलेश दूर करती है।