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किशोरों के टीकाकरण में तथ्यों का अवलोकन हो

जमशेदपुर। वैज्ञानिक तथ्य है कि 18 वर्ष से कम आयुवर्ग में प्रतिरक्षा प्रणाली सबसे मजबूत रहती है। इसलिए इस बात पर चिंतन करने की जरूरत है कि क्या इन आयुवर्ग को टीके की आवश्यकता है भी कि नहीं? भारत में किशोरों व बच्चों को विश्व के दूसरे देशों की तुलना में कोविड की पीक लहर ने भी बहुत कम प्रभावित किया है।

पद्रह से अठारह वर्ष के किशोरों को तीन जनवरी से कोविड वैक्सीनेशन का फैसला जल्दबाजी में लिया गया लगता है। कोविड की पहली लहर हो, दूसरी लहर हो, डेल्टा प्लस वैरिएंट हो या अब ओमिक्रॉन वैरिएंट हो, किसी भी समय में 18 वर्ष से कम आयुवर्ग को न्यूनतम खतरा रहा है। इन वर्ग में इंफेक्शन की गंभीरता बहुत कम है और जो डेटा हमारे पास है, उसके मुताबिक 10 लाख आबादी में सिर्फ 2 मौतें दर्ज की गई हैं। वैज्ञानिक तथ्य है कि 18 वर्ष से कम आयुवर्ग में प्रतिरक्षा प्रणाली सबसे मजबूत रहती है। इसलिए इस बात पर चिंतन करने की जरूरत है कि क्या इन आयुवर्ग को टीके की आवश्यकता है भी कि नहीं? भारत में किशोरों व बच्चों को विश्व के दूसरे देशों की तुलना में कोविड की पीक लहर ने भी बहुत कम प्रभावित किया है।

इस स्थिति को देखते हुए एम्स के वरिष्ठ चिकित्सक डा. संजय के. राय ने 15 से 18 साल के किशोरों को वैक्सीनेशन के फैसले को अनसाइंटिफिक यानी गैर-वैज्ञानिक बताया है। डॉ. राय एपिडेमियोलॉजिस्ट और इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। डा. राय का तर्क है कि इस फैसले पर अमल करने से पहले उन देशों के डेटा की स्टडी करनी चाहिए, जहां पहले ही बच्चों को वैक्सीन लगाई जा रही है। करीब 40 देशों में बच्चों व किशोरों को टीका लगाया जा रहा है। डा. राय के मुताबिक, अगर रिस्क और बैनेफिट एनालिसिस करें तो पाएंगे कि बच्चों को वैक्सीन लगाने के फायदे कम हैं और खतरे ज्यादा हैं। एम्स में बड़ों और बच्चों पर कोवैक्सिन का ट्रायल चल रहा है। डा. राय इस ट्रायल में इनवेस्टिगेटर हैं। चूंकि डा. राय का वैक्सीन व उसके प्रभाव पर खास अध्ययन है, इसलिए उनको बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

महामारी विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया के मुताबिक भी फिलहाल हाई-रिस्क कैटेगरी के बच्चों के अलावा किसी को भी वैक्सीन की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन के जरिये तीन जनवरी से 15 से 18 साल आयुवर्ग के टीकाकरण की घोषणा की है। सरकार ने जायडस कैडिला की वैक्सीन जायकोव-डी को बच्चों के वैक्सीनेशन के लिए स्वीकृति दी है। वैक्सीन को 12 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों के लिए इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन (ईयूआई) की मंजूरी मिली है। कहा जा रहा है कि सरकार ने यह फैसला नए कोरोना वैरिएंट ओमिक्रॉन के बढ़ते खतरे को देखते हुए लिया है। हालांकि ओमिक्रॉन का किशोरों व बच्चों पर असर का कोई अध्ययन नहीं है, कोई डाटा नहीं है और न ही केस है। ऐसे में सरकार को एक बार ठहर कर विशेषज्ञ चिकित्सकों की सलाह पर गौर करते हुए अपने निर्णय पर फिर से सोचना चाहिए। देश में बच्चों का वैक्सीनेशन होना चाहिए या नहीं, इसे लेकर विशेषज्ञों के बीच काफी वक्त से बहस चल रही है, पर सहमति नहीं बनी है, ऐसे में सरकार का ऐलान किसी को पच नहीं रहा है।

अब तक हमने देखा है कि कोविड टीके की पहली डोज व दूसरी डोज लगने के बाद भी लोग पॉजीटिव हुए, सरकार के पास यही डाटा नहीं है कि दोनों डोज लगने के बाद किसी व्यक्ति पर कोरोना का खतरा टल गया है, अभी ओमिक्रॉन एकदम नया वैरिएंट है, इस पर टीके प्रभावी होने को लेकर कोई वैज्ञानिक डाटा व प्रमाण नहीं है। करोड़ों लोगों के टीकाकरण के बाद भी विश्व स्वास्थ्य संगठन, टीका बनाने वाले वैज्ञानिक, फार्मा कंपनियां व चिकित्सा विशेषज्ञ यह कहने की स्थिति में नहीं है कि टीके की दोनों डोज के बाद फिर कोरोना नहीं होगा। बूस्टर डोज लेने के बाद भी लोग संक्रमित हुए हैं। किसी फैसले का कोई मकसद होना चाहिए। कोरोना वैक्सीन लगाने के पीछे इंफेक्शन रोकना, बीमारी की गंभीरता या मौत का खतरा कम करना मकसद है। वैक्सीन के बारे में अब तक जो भी जानकारी है, उसके मुताबिक वह इंफेक्शन को रोकने में बहुत कारगर नहीं हैं। ऐसे में बच्चों को वैक्सीन देने से हमारा कोई मकसद पूरा नहीं हो रहा है। इसलिए सरकार को किसी भी फैसले पर अमल करने से पहले सभी तथ्यों का गहन अवलोकन करना चाहिए।

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