आनन्दमार्गीयों ने हर्षोल्लास से मनाया प्रथम दीक्षा दिवस अनुष्ठान
मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के लिए साधना, सेवा,सत्संग और त्याग के राह पर गम्भीरतापूर्वक चलना चाहिए। मनुष्य का जीवन,मुक्ति की आकांक्षा एवं सदगुरु का सानिध्य ये तीन चीजें दुर्लभ है।वैश्विक महामारी कोरोना काल में सरकार के गाइडलाइन का पालन करते हुए ऑनलाइन कार्यक्रम का आनंद जमशेपुर सहित पूरे विश्व के आनंदमार्गीयो ने उठाया, पूर्णिमा,प्रथम दीक्षा दिवस का आनन्दानुष्ठान मनाया गया। इस अवसर पर आनन्द मार्ग के पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय आचार्य विश्वदेवानन्द अवधूत ने उपस्थित साधकों को सम्बोधित किया। जमशेदपुर एवं उसके आसपास के क्षेत्र में 3,000 से भी ज्यादा आनंद मार्गी घर बैठे ही लैपटॉप मोबाइल एवं अन्य साधनों से भी पुरोधा प्रमुख दादा का प्रवचन सुन आध्यात्मिक आनंद का अनुभव किया जिसका आनलाईन विभिन्न सोशल मिडिया से टेलीकास्ट किया गया।पुरोधा प्रमुख जी ने कहा कि मनुष्य का जीवन,मुक्ति की आकांक्षा एवं सदगुरु का सानिध्य ये तीन चीजें दुर्लभ है। मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के लिए साधना, सेवा,सत्संग और त्याग के राह पर गम्भीरतापूर्वक चलना चाहिए। उन्होंने ने कहा कि पूर्णिमा का यह त्यौहार आनन्द मार्ग के साधकों एवं साधिकाओं के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है।आज से 82 वर्ष पूर्व 1939 में आनन्द मार्ग के प्रवर्तक श्री आनंदमूर्ति जी ने
श्रावणी पूर्णिमा के रात्रि में भागीरथी नदी के काशीमित्रा घाट पर दुर्दांत डाकू कालीचरण बंधोपाध्याय को तंत्र दीक्षा देकर उनको देवत्व में प्रतिष्ठित किया था।
वे ही बाद में कालिकानन्द के नाम से मशहूर हुए।
इसी श्रावणी पूर्णिमा के दिन मार्ग गुरुदेव ने नूतन आनन्द मार्गीय सभ्यता का सूत्रपात किया जो विश्व को नई रोशनी प्रदान कर रहा है।
यह कार्यक्रम पूरी दुनियाभर के यूनिट में मनाया गया।