आखिर आंदोलन में हिंसा व आगजनी कब तक चलेगी? लक्ष्मी सिन्हा
बिहार पटना सिटी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने संवाददाता से बातचीत में कहां की भारत में संवैधानिक व्यवस्था संतुष्ट है। चुनाव में बहुमत प्राप्त दल को काम करने का जनादेश मिलता है और विपक्ष को निगरानी करने, सुझाव देने व आलोचना करने का अधिकार है। सरकार को अपनी बात मनाने के लिए जबरदस्ती बाधा नहीं किया जा सकता। आंदोलन लोकतांत्रिक व्यवस्था का जन _उपकरण होते हैं।नि: संदेश आंदोलनों के माध्यम से सरकार तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है। लेकिन आंदोलन में मर्यादा उल्लंघन व हिंसा नहीं होनी चाहिए। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि किसी भी आंदोलन विरोध प्रदर्शन में हिंसा राष्ट्रीय चिंता का विषय है। पिछले कुछ समय से यह सिलसिला जारी है। पहले नागरिकता शोधन कानून या नहीं सीएए, फिर किसी कानून विरोधी मुहिम और अब अग्निपथ के विरोध में यही रुझान देखने को मिल रहा है। सैन्य बलों में भर्ती की नई योजना के विरोध की आड़ में अराजक तत्वों ने राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। इससे पहले कृषि सुधार कानूनों के विरोध में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं को जिस प्रकार साल भर से अधिक समय तक घेरे रखा गया। गणतंत्र दिवस पर हुई और अराजक यह कौन सा आंदोलन का तरीका है? श्रीमती सिन्हा ने कहा कि स्वतंत्र भारत में ही 1975 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति आंदोलन हुआ था। उसका मुख्य नारा अहिंसा की प्रतिबद्धता ही था हमला चाहे जैसी भी हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा। कुछ समय पहले अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले आंदोलन में लाखों लोगों ने हिस्सा लिया था। आंदोलनकारियों के हाथ में राष्ट्रीय ध्वज था। आंदोलन के आचार व्यवहार का केंद्र अहिंसक मर्यादा था। हिंसा में विश्वास रखने वाले राजनीतिक गैर राजनीतिक व सामाजिक समूह भारत में स्वीकार्य नहीं है। ऐसे मित्र सविधान रक्षा की गुहार तो लगाते रहते हैं लेकिन आंदोलनों में संविधान के उल्लंघन से पीछे नहीं रहते। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि विचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सम्मेलन और संगठन निर्माण संविधान में मौलिक अधिकार है। हिंसा और अराजकता के विश्वासी इसी मौलिक अधिकार का दुरुपयोग करते हैं। यह भूल जाते हैं कि मौलिक अधिकार के किसी भाग में भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा आलोकव्यवस्था वह सदाचार को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को करवाई की छूट दी गई है। सरकार को इस संबंध में कानून बनाने का अधिकार भी दिया गया है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि भारत बंद क्या है? क्या यह मात्र शक्ति प्रदर्शन का आत्मघाती खेल नहीं है? कोई भी संविधाननिष्ठा व्यक्ति अपने देश को बंद करने की अपील नहीं कर सकता। अराजक आंदोलनों से हुई राष्ट्रीय क्षति अनुमान से ज्यादा है। सभी जिम्मेदार लोग आंदोलनों की हिंसा पर गहन विचार करें। न्यायालयों को ऐसी अराजकता का स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। कार्यपालक, विधायिका वह न्यायपालिका को मिलकर आंदोलनों की हिंसा के विरुद्ध अपना कर्तव्य निर्वहन करना चाहिए। आखिरकार आंदोलनों में हिंसा व आगजनी कब तक चलेगी?तमाम पक्ष संविधान की दुहाई तो देते हैं, मगर आंदोलन की आड़ में अराजकता का सहारा लेते हैं आंदोलनों में हिंसा पर विराम लगनी ही चाहिए।