अवतरण दिवस की परम बेला
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा:!
गुरर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः!
गुरु पूर्णिमा इस दिन की हैं बड़ी महिमा।
इस दिन धरती पे उतर आते हैं परमात्मा।
धरती पर उत्सव छाया।
सावन का महीना अद्भुत विशेष आया।
हरियाली की चादर चढ़ी।
धरती पर छाई गुरु अवतरण दिवस की घडी।
पत्तों पर बूँदों की बौछार,मन में उठी प्रेम की पुकार।
आसमान में बादल घिरे,पानी की झड़ी छम-छम गिरे।
धान के खेतों में खुशहाली,
सभी शिष्यों के चेहरे पर लाली।
पर्वतों पर बिछी धुंधली चादर,
नदियाँ भी चलीं शोर मचाकर।
तालाबों में कुमुदिनी खिले, प्यासी धरती तृप्ति मिले।
मन मोहक सावन का दृश्य,हर शिष्य के दिल में खिलता प्रेम का दृश्य।
गुरु की महिमा का मैं कैसे करूँ बखान।
गुरु से ही लिया है ये सब अर्जित ज्ञान।
ऐसा कोई कागज़ नहीं जिसमे वो
शब्द समाएं।
ऐसी कोई स्याही नहीं जिससे सारे गुण गुण लिखे जाए ।
सत्य -असत्य में जो भेद बताएं।
जीवन -पथ पर जो चलना सिखाएं।
वहीं सच गुरु कहलाएं।
गुरु ज्ञान का सागर है,गुरु एक ज्योति है जो मन को रौशनी देती है।
ज्ञान की किरणें बिखेर अंधकार को करते दूर,गुरु का हॄदय सूर्य की तरह है।
स्वरचित मौलिक
सुश्री कुमारी सुजाता चौधरी
इंदौर मध्यप्रदेश