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भक्त हृदय में कोई संकीर्णता नहीं है वही वास्तव में बैकुंठ है

जमशेदपुर एवं उसके आसपास के लगभग 3000 से भी ज्यादा आनंद मार्गी बिहार ,जमालपुर बाबा नगर में तीन दिवसीय धर्म महासम्मेलन में भाग ले रहे हैं जो लोग इस धर्म महा सम्मेलन में शारीरिक रूप से सम्मिलित नहीं हो पाए हैं वह घर बैठे भी वेब टेलीकास्ट के माध्यम से मोबाइल एवं लैपटॉप पर धर्म महासम्मेलन का आनंद ले रहे हैं
आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आयोजित
बाबा नगर, (जमालपुर),अमझर के आनंद संभूति मास्टर यूनिट के मैदान में तीन दिवसीय धर्म महासम्मेलन के दूसरे दिन साधक- साधिकाओं ने ब्रह्म मुहूर्त में गुरु सकाश, पाञ्चजन्य एवं योगासन का अभ्यास अनुभवी आचार्य के निर्देशन में किया।
संध्याकाल में सामूहिक धर्म चक्र किया गया। आनंद मार्ग प्रचारक संघ के पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने प्रवचन में कहा कि
विस्तारित मन ही बैकुंठ है।

मन के संकुचित अवस्था में आत्मा का विस्तार संभव नहीं है। यदि इस संकुचित अवस्था को हटा दिया जाए, दूर कर दिया जाए ,तो मन में स्वर्ग की स्थापना हो जाती है। इसलिए बाबा कहते हैं विस्तारित हृदय ही बैकुंठ है ।जहां मन में कोई कुंठा नहीं है,कोई संकीर्णता नही है, उसे ही स्वर्ग कहते हैं । भक्त कहता है कि मैं हूँ और मेरे परम पुरुष हैं दोनों के बीच में कोई और तीसरी सत्ता नहीं है ।मैं किसी तीसरे सत्ता को मानता ही नहीं हूँ।इस भाव में मनुष्य प्रतिष्ठित होता है तो उसी को कहेंगे ईश्वर प्रेम में प्रतिष्ठा, भगवत्प्रेम में प्रतिष्ठा हो गई ।यही है भक्ति की चरम अवस्था। चरम अवस्था में भक्त के मन से जितने भी ईर्ष्या, द्वेष, घृणा , भय, लज्जा , शर्म ,मान मर्यादा, यश -अपयश इत्यादि के भाव समाप्त हो जाते हैं। उनका मन सरल रेखाकार हो जाता है और उनमें ईश्वर के प्रति भक्ति का जागरण हो जाता है। पुरोधा प्रमुख जी ने ईश्वरीय प्रेम युक्त भक्तऔर तथाकथित कुंठाग्रस्त मन वाले भक्त के चरित्र चित्रण कृष्ण के सिर दर्द वाली कथा के माध्यम से समझाया । एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने कहा की मेरे सिर में बहुत दर्द है। यह दर्द भक्तों के चरण धूलि से ही ठीक होगा। यह बात सुनकर नारदजी भगवान के तथाकथित बड़े-बड़े तगड़े भक्तों के पास गए ।
जो भगवत चर्चा, भगवत कथा के माहिर थे ,उनमें से सबों ने उन्हें यह कहते हुए चरण धूलि देने से इनकार कर दिया कि हमें पाप लगेगा। नारद खाली हाथ लौट आए और यात्रा वृतांत भगवान श्रीकृष्ण को सुनाया । तब श्री कृष्ण ने नारद से कहा कि तुम वृंदावन जाओ।वृंदावन जाकर जब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के सिर दर्द की बात कही तो सभी सरल मन के भक्त गोप – गोपी अपने पैरों के धूल देने के लिए तैयार हो गए । पापी बनने और नरक में जाने की बात जब नारद ने उन्हें कहा तो भक्त गोपीजन ने इसकी परवाह न करते हुए अपने पैरों की धूल ही दे दी । उनका तर्क यह था कि यदि हमारे आराध्य इससे ठीक हो जाएंगे तो इससे बड़ी खुशी की बात हमारे लिए क्या हो सकती है।

वास्तव में यह तो श्री कृष्ण का “कपट रोग” था। जैसे ही नारद धूल लेकर कृष्ण के पास आए “कपट रोग “यूं ही ठीक हो गया। पुरोधा प्रमुख जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण भक्ति की परीक्षा ले रहे थे जिसमें वृंदावन के भक्त सफल हो गए और तथाकथित बड़े-बड़े भक्त असफल हुये। उन्होंने कहा कि जहाँ भक्त हृदय में कोई संकीर्णता नहीं है, कुंठा से रहित है, वही वास्तव में बैकुंठ है। इसे ही आंतरिक बैकुंठ कहते हैं। बाहरी बैकुंठ है बाबा नगर जमालपुर। अनेक भक्तों ने इस भूमि पर आध्यात्मिक अनुभूति के ऊंचे शिखर को छुआ है। सच्चे भक्त लक्ष्य प्राप्ति तक अनवरत अध्यात्मिक साधना का कठोर अभ्यास करते हैं।

कौशिकी नृत्य 22 रोगों की दवा है

आनंद मार्ग के प्रवर्तक “बाबा “श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने 6 सितंबर 1978 को कौशिकी नृत्य का प्रवर्तन किया था।
भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी कौशिकी नृत्य के जन्मदाता हैं। यह नृत्य शारीरिक और मानसिक रोगों की औषधि है। विशेषकर महिला जनित रोगों के लिए रामबाण है ।
इस नृत्य के अभ्यास से 22 रोग दूर होते हैं। सिर से पैर तक अंग- प्रत्यंग और ग्रंथियों का व्यायाम होता है। मनुष्य दीर्घायु होता है ।यह नृत्य महिलाओं के सु प्रसव में सहायक है। मेरुदंड के लचीलेपन की रक्षा करता है ।मेरुदंड, कंधे ,कमर, हाथ और अन्य संधि स्थलों का वात रोग दूर होता है। मन की दृढ़ता और प्रखरता में वृद्धि होती है । महिलाओं के अनियमित ऋतुस्राव जनित त्रुटियां दूर करता है । ब्लाडर और मूत्र नली में के रोगों को दूर करता है। देह के अंग-प्रत्यंगों पर अधिकतर नियंत्रण आता है ।मुख् मंडल और त्वचा की दीप्ति और सौंदर्य वृद्धि में सहायकहै। कौशिकी नृत्य त्वचा पर परी झुर्रियों को ठीक करता है । आलस्य दूर भगाता है । नींद की कमी के रोग को ठीक करता है । हिस्टीरिया रोग को ठीक करता है । भय की भावना को दूर कर के मन में साहस जगाता है। निराशा को दूर करता है। अपनी अभिव्यंजना क्षमता और दक्षता वृद्धि में सहायक है । रीड में दर्द, अर्श, हर्निया, हाइड्रोसील ,स्नायु यंत्रणा ,और स्नायु दुर्बलता को दूर करता है। किडनी, गालब्लैडर, गैस्ट्राइटिस, डिस्पेप्सिया, एसिडिटी ,डिसेंट्री ,सिफलिस, स्थूलता ,कृशता और लीवर की त्रुटियों को दूर करने में सहायता प्रदान करता है। 75 से 80 वर्ष की उम्र तक शरीर की कार्य दक्षता को बनाए रखता है।

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