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विधायक सरयू राय ने किया पलटवार पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो को दिया जवाब

जमशेदपुर। विधायक सरयू राय ने पलटवार करते हुए कहा कि पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो मेरे शुभचिंतक हैं। मौक़ा-बेमौका वे जो भी बोलते हैं उसमें हमारी भलाई की भावना निहित रहती है. उन्होंने प्रेस वक्तव्य के माध्यम से जो अर्द्ध सत्य कहा है वह उन्होंने मेरे फ़ायदे के लिये कहा है. लगता है मुझे फ़ायदा पहुँचाने का अवसर वे ढूँढते रहते है।

दो वर्ष पहले जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में उन्होंने मेरा जमकर विरोध किया था. इसका मुझे बड़ा फ़ायदा हुआ था. मैं कठिन चुनाव जीत गया था.मेरे चुनाव जीत जाने के बाद लगता है उनके मन में कोई ग्रंथि बैठ गई है. इस ग्रंथि से ग्रस्त होकर वे मेरे बारे में जहां तहाँ बोलते रहते हैं. वे जब कभी मेरे बारे में बोलते हैं उसका लाभ मुझे मिल जाता है. इसलिये मेरे विरोध में उनके द्वारा बोलने का मैं कभी बुरा नहीं मानता. आज भी उन्होंने जो कुछ कहा है उसके लिये उन्हें धन्यवाद देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि उनके मन में व्याप्त आक्रोश आज नहीं तो कल अवश्य समाप्त हो जायेगा. वस्तुस्थिति उनकी समझ में आ जायेगी, मन में बैठी ग्रंथि दूर हो जायेगी।एक अंतर्मुखी स्वघोषित बुद्धिजीवी की तरह ऐसे विषयों पर मेरे संबंध में वे जो भी बोलते लिखते हैं उसका स्वाभाविक लाभ मुझे यह मिलता है कि मैं ऐसे विषयों पर गहराई से सोचता,विचारता हूँ, आत्म चिंतन और आत्म मंथन करता हूँ. उन्होने मुझे दिकू कहा है. इसका मुझे मलाल नहीं है. मुझे जानने वाले उनका यह प्रमाण पत्र ख़ारिज कर देते हैं.
शैलेन्द्र महतो यह नहीं जानते कि झारखंड अलग राज्य बनने और राज्य के आगे बढ़ने के बार में मेरे विचार पहले क्या रहे हैं और आज क्या हैं तो मैं उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने के सिवाय और क्या कर सकता हूँ. उन्हें बता दूँ कि इस बारे में मेरे विचार पूर्ववत हैं. उनके विचार तो सुबह शाम बदलते रहते हैं।

उन्हें बता दूँ कि कई उपयुक्त मौक़ों पर मैं ज़ाहिर कर चुका हूँ कि स्थानीयता के लिये 1932 के खतियान से मेरा कोई विरोध नहीं है. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल जी के समय से इस बारे में मेरे विचार जगज़ाहिर हैं. मैं इतना ही कहता हूँ कि इसके साथ- साथ देश के संविधान द्वारा तय की गई सीमा मर्यादा को भी ध्यान में रखा जायेगा तभी इसे लागू किया जा सकता है. शैलेंद्र महतो से मेरी एक ही अपेक्षा रहती है कि वे चित्त स्थिर रखें, समय के साथ अपने राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक विचार नहीं बदलें. वे बुद्धिजीवी हैं तो संवाद की मानसिकता रखें, विवाद की नहीं.

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