मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के विधानसभा क्षेत्र सरायकेला का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया
बांकुड़ा के दंपति नवजात को 4 लाख में खरीद कर ले गए
सरायकेला। मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के विधानसभा क्षेत्र सरायकेला में एक सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है। मामला जिले के गम्हरिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का है।
यहां बीते 28 मई को एक गर्भवती का नाम बदलकर पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा के एक दंपत्ति नवजात को अपने साथ ले गए हैं।
मिली जानकारी के अनुसार चार लाख में बच्चे का सौदा किया है। इसमें कांड्रा के कंचन पाड़ा की एक महिला सुनीता प्रमाणिक उर्फ सोमा ने अहम किरदार निभाई है। सुनीता जेएसएलपीएस कर्मी है और सिलाई सेंटर चलाती है।
कांड्रा थाना अंतर्गत हरिश्चंद्र घाट बांधाझुड़िया की रहनेवाली पूर्णिमा तांती को प्रसव पीड़ा के बाद सहिया जयंती सेन और सुनीता प्रमाणिक सुबह 6:45 (रजिस्टर के मुताबिक) में गम्हरिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचती है। यहां 6: 55 में बच्चे का जन्म होता है. मजे की बात ये है कि स्वास्थ्य केंद्र के किसी भी रिकॉर्ड में पूर्णिमा तांती का नाम तक दर्ज नहीं है। फिर सवाल ये उठता है कि पूर्णिमा तांती का प्रसव कहां हुआ और उसका बच्चा कहां गया ?
अस्पताल के रजिस्टर में क्रमांक संख्या 218 में सुदीप्ता दत्ता, पति सजल दत्ता, निवासी भिलाई पहाड़ी पीए कांड्रा, पीओ कांड्रा, ज़िला सरायकेला दर्ज है। कांड्रा पंचायत में कहीं भी भिलाई पहाड़ी नहीं है। मतलब सुदीप्ता दत्ता ने अपना पता पूरी तरह से गलत दर्ज कराया है। हैरान करने वाली बात ये है कि सहिया जयंती सेन और सुनीता प्रमाणिक उर्फ सोमा ने स्वास्थ्य विभाग को गुमराह कर गलत महिला का नाम क्यों दर्ज कराया ?
सुदीप्ता और उसके पति बच्चे को टीएमएच से रेफर कराकर बच्चा सहित गायब हो गए। सुदीप्ता ने रेफर का पेपर भी नहीं लिया जो आज भी सीएचसी में पड़ा हुआ है।
जयंती सेन को कांड्रा एसकेजी कॉलोनी में सर्वे के क्रम में पूछताछ की। जयंती ने बताया कि बीते 28 मई को पूर्णिमा तांती को प्रसव पीड़ा होने के बाद सुनीता प्रमाणिक के कहने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गम्हरिया लेकर गई थी। वहां उसे भर्ती कर दिया। उसके बाद क्या हुआ उसे नहीं पता। जब जयंती से यह पूछा गया कि अस्पताल के रजिस्टर में पूर्णिमा के जगह सुदीप्तो दत्ता का नाम कैसे दर्ज हुआ तो जयंती ने बताया कि यह काम सुनीता का है। मैं इस संबंध में कुछ भी नहीं जानती. सवाल यह उठता है कि जब अस्पताल में गलत नाम दर्ज कराया गया तब इसकी जानकारी सहिया ने वरीय अधिकारियों या अस्पताल के कर्मियों को क्यों नहीं दिया ? अस्पताल ने मरीज को भर्ती करने से पहले पूरी पड़ताल क्यों नहीं की ? डिस्चार्ज के वक्त महिला का पूरा दस्तावेज क्यों नहीं लिया ?
मैं समाजसेवा करती हूं पूर्णिमा गर्भ गिराना चाहती थी मैंने उसे सलाह दिया कि ऐसा मत करो कई लोग ऐसे होते हैं जो बच्चे को गोद लेते हैं तुम बच्चे को जन्म दो। इसी बीच सुदीप्ता दत्ता से उसका संपर्क हुआ उसने बच्चे को गोद लेने की इच्छा जताई. दोनों के बीच कोर्ट के पेपर पर लिखापढ़ी हुआ और प्रसव के बाद सुदीप्ता बच्चे को लेकर चली गई। जब सुनीता से यह पूछा गया कि अस्पताल में पूर्णिमा को भर्ती कराया गया तब वहां सुदीप्ता का नाम क्यों दर्ज कराया गया ? इस सवाल के जवाब में वह निरुत्तर हो गई और कुछ भी बोलने से मना कर दिया। उसने बताया कि सुदीप्ता को बीस वर्षों से बच्चा नहीं हो रहा था। वह पिछले पांच महीने से पूर्णिमा का ख्याल रख रही थी। उसके इलाज में होने वाले सभी खर्च वहन कर रही थी। इस खेल में जिला परिषद पिंकी मंडल और एक पूर्व उपमुखिया की भी संलिप्तता है। एक चिट्ठी हमारे हाथ लगी है जिसमें सुदीप्ता दत्ता ने जिला परिषद पिंकी मंडल को एक आवेदन बीते 23 अप्रैल 2024 को दिया है, जिसमें उसने जिक्र किया है कि उसका कोई संतान नहीं है। उसे अपने सहेलियों के माध्यम से पता चला कि पूर्णिमा तांती जो गर्भवती है वह अपने होने वाले बच्चों को गोद दिलाना चाहती है। अतः इस पर उचित दिशा- निर्देश देने की कृपा करें। जिस पर सुदीप्ता दत्ता, सजल दत्ता, कविता मोदी, पूर्णिमा तांती, विकाश तांती, रीना मोदी, मंपू दत्ता, पूजा पाल, दुर्गा सेन, सोमा प्रमाणिक और जयंती सेन के हस्ताक्षर है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस आवेदन में सुदीप्ता दत्ता ने जिस पते का जिक्र किया है वह भिलाई पहाड़ी जमशेदपुर के एमजीएम थाना क्षेत्र में है। अस्पताल में जिस भिलाई पहाड़ी का जिक्र किया है उसे कांड्रा में दर्शाया गया है। सवाल ये उठता है कि किस कानून के तहत बच्चे को साजिश के तहत गायब कराया गया ? क्या जिला परिषद सदस्य को इसका अधिकार है कि बगैर एडॉप्शन की प्रक्रिया के एकमात्र आवेदन पर किसी के भी बच्चे को किसी को गोद दिला दे ? सोमा की भूमिका की जांच होनी चाहिए। जेएसपीएल कर्मी होने के नाते उसने गैर कानूनी काम कैसे किया और इसके लिए उसने कितने पैसे लिए ? कांड्रा के गली- गली में इस खेल की चर्चा जोरों पर है। यहां तक कि स्थानीय पुलिस और सिविल सर्जन को भी इस पूरे खेल की जानकारी नहीं है।
पूर्णिया से जब पूरा घटनाक्रम जानना चाहा तो उसने बताया कि उसके चार बच्चे हैं। बड़ा बेटा दिव्यांग है. वह बच्चों की परवरिश कर पाने में सक्षम नहीं है. सुदीप्ता उसकी दूर की रिश्तेदार है। उसे शादी के बीस साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ। वह बच्चे को गोद लेना चाहती थी। इसलिए मैं बच्चा उसे दे दिया। हालांकि पूर्णिमा ने पैसे के लेनदेन से इनकार किया है।
वहीं इस पूरे मामले पर स्वास्थ्य विभाग के आलाधिकारी मौन हैं। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि स्वास्थ्य विभाग, जिला प्रशासन और सम्बंधित विभाग यानी सीडब्ल्यूसी इस मामले पर क्या संज्ञान लेती है। लेती भी है या नहीं। वैसे स्वास्थ विभाग में क्या चल रहा है इस पूरे पड़ताल में सामने जरूर आ गया है। फिलहाल गम्हरिया थाना पूरे मामले की जांच पड़ताल में छूट गई है।