महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर एक सधन विमर्श की आवश्यकता: लक्ष्मी सिन्हा
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बिहार (पटना) समाज सेविका श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि महिला सशक्तिकरण के इस दौर में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा देश एवं समाज में सक्रिय विमर्श का हिस्सा नहीं बन पा रही है। ऐसा शायद इसलिए है, क्योंकि भारतीय समाज में महिलाएं एक लंबे कल तक अवमानित और शोषण की शिकार रही है। सामाजिक परंपराओं,रीति- रिवाजों और समाज में प्रचलित प्रतिमानो का महिलाओं के उत्पीड़न में योगदान भी काम नहीं रहा। महिलाओं के प्रति शारीरिक हिंसा, अपहरण, यौन क्रूरता और उन पर तेजाब फेंकने जैसी घटनाएं आज भी सुनने और पढ़ने को मिल रही है। इसके अलावा सार्वजनिक स्थानों में उनके साथ छेड़छाड़ की घटनाएं भी होती रहती है। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) कि वर्ष 2022 कि आई रिपोर्ट की माने तो देश में महिलाओं के विरुद्ध 4% और बच्चे के विरुद्ध अपराधों में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इन घटनाओं से जुड़ी हर घंटे 51 एफआईआर दर्ज हो रही है। स्पष्ट है की स्थिति चिंताजनक है। साइबर अपराधों के मामलों में भी 24.4% की वृद्धि दर्ज की गई है। इन अपराधों का शिकार महिला भी बन रही है। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में लगातार 3 वर्षों से वृद्धि दर्ज की जा रही है बेहतर उदाहरण 2022 में महिलाओं के विरुद्ध तमाम अपराधों से जुड़े कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 एवं 2020 में क्रमशः 4,28,278 एवं 3,71,503 थे। 20 लाख से अधिक आबादी वाले 19 महानगरों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 48,755 मामले दर्ज हुए जबकि 2021 में यह आंकड़ा 43,414 रहा था। श्रीमती सिन्हा ने आगे कहा कि सवाल है कि महिला सशक्तिकरण के लिए देश एवं प्रदेशों के स्तर से किया जा रहे साधन प्रयासों के बाद भी वह कौन- सी प्रवृत्ति है, जो लोगों को महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने को उकासाती है? इस संदर्भ मैं परिवार का समाजशास्त्र बताता है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध एक प्रकार की प्रवृत्ति है, जो हिंसा- प्रवृत्त व्यक्तित्व में समाहित रहती है। ऐसे लोग शक्की मिजाज, वासनामय, विवेकहीन, व्यभिचारी, भावनात्मक रूप से आशांत और ईषर्यालु प्रकृति के होते हैं। हिंसा करने वाले व्यक्ति में ये लक्षण उसके प्रारंभिक जीवन में विकसित होते हैं। ऐसे हिंसा-प्रवृत्त लोग अपने जीवन की हताशा के कारण महिलाओं पर वर्चस्व कायम करने के लिए अपराध की ओर प्रवृत्त होते हैं लिहाजा इस कड़ी को कमजोर करने के लिए महिलाओं और बच्चों से जुड़े कानून की प्रभावोत्पादकता को बढ़ाना होगा। बच्चों के एकाकीपन को दूर करने के लिए परिवारों को संवाद की परंपरा बढ़ाने के साथ-साथ बच्चों को प्रेम और स्नेह का आवरण भी प्रदान करना होगा। सरकारों को भी समग्र रूप में महिलाओं एवं बच्चों से जुड़ी संस्थाओं को साथ लेकर इनसे जुड़े कानून की जानकारी तथा इन्हीं से जुड़ी योजनाओं में भी उनकी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2047 में जी विकसित भारत का खाका खींचा है, उसका रास्ता आधी आबादी की पूर्ण सुरक्षा और बहुआयामी विकास से होकर ही निकलेगा। इसलिए महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर एक साधन विमर्श की आवश्यकता है।