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“बीते दुर्गा पूजा पर कुछ विशेष”

सौरभ कुमार
जादूगोड़ा। त्यौहारो का देश हमारा हमको इससे प्यार है। त्यौहार कब खत्म हुआ पता ही नहीं चला। लोगों का उल्लास तो इससे हम सब वाकिफ हैं। मानसिक संकुचल के कारण हम लोगों ने अपने दायरे के साथ-साथ त्योहारों के दायरे को भी सीमित कर लिया है। सब सोचते होंगे यार अपना अपना नौकरी धंधा कामकाज, कहां यार समय है अभी मेला, ठेला, पूजा के लिए…
किसी भी पर्व एवं त्योहार के हर्षोल्लास की व्यापकता पहले की तुलना में अब कहीं भी नहीं रह गया है। और ना ही परब के मेलों में पहले जैसा लोगों का हुजूम कहीं देखने को मिलता है। पूजा से पहले काम निपटाने का जोश, मन के अंदर एक अलग ही ऊर्जा का संचार होता था, अब तो अच्छा होगा जितना जल्दी भूल जाइए उस पुराने दिनों को, भाग दौड़ भरी इस जिंदगी में पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव व आधुनिकता की चकाचौंध ने तीज त्यौहार की रौनक को फीका कर दिया है और आने वाली पीढियां इसे सिर्फ पुरानी तस्वीरों में दिखेगी,या फिर यूट्यूब पर वीडियो सर्च करेगी। पहले उन समय में लोग ज्यादा सजग थे, इसलिए नहीं कि उनके पास ज्यादा समय था, या फिर आप सोचते हैं कि वह लोग बेरोजगार थे, बल्कि इसलिए कि उनके लिए पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण उनकी सभ्यता और संस्कृति थी दरअसल, आज आम बातचीत के दौरान छोटी-छोटी बातों में हम लोग बोलते हैं। अरे यार पहले जैसा मजा नहीं रहा। पूजा जैसा लग नहीं रहा है। ऐसा इसलिए जानते हैं क्यों? हम लोगों ने अपनी सोच को उस दिशा में मोड़ लिया है, जहां इंसानों में इंसानियत ही नहीं बची है। हम लोग हैं जो त्योहारों को ऐसे मना रहे हैं जिसकी खुशबू पड़ोसियों तक भी नहीं पहुंच पा रही है। भारतीय संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदिकाल से ही काफी महत्व रहा है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां पर मनाए जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं।
अगर समय रहते हम लोगों ने अपने कदम वापस नहीं लिए तो ‘यार अब पहले जैसा मजा नहीं आ रहा है य बोलने और सुनने के लिए तैयार रहियेगा

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