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धरती का बैकुंठ और त्रेता की विश्वप्रसिद्ध हैं श्रीराम: लक्ष्मी सिन्हा


बिहार पटना: समाज सेविका श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा श्री रामजन्मभूमि पर श्रीरामलाल की प्राण-प्रतिष्ठा हो रही है। प्रथम दृष्ट्या यह एक धार्मिक अनुष्ठा है, पर इतना भर करने से प्राण- प्रतिष्ठा के इस प्रसंग को समग्रता में नहीं समझा जा सकता। वस्तुत: भारत के संदर्भ में धर्म शब्द का अभिप्राय अत्यंत व्यापक है। इस व्यापकता को परिभाषित करते हुए हमें धर्मेविग्रह श्रीराम को देखना होगा। श्रीराम की धर्मप्राण भारत के साथ एक विशेष प्रकार की संगति है। देश के इतिहास-भूगोल-संस्कृति और विश्वास में निहित जीवन-बोध को श्रीराम अभिव्यक्त कहते हैं। यही कारण है कि यह देश उन्हें परमार्थरूप ब्रह्म स्वीकारने के साथ ही मर्यादा पुरुषोत्तम भी मानते हैं। वेदों के मंत्र,रामायण से लेकर वाल्मीकि, देवव्यास और गोस्वामी तुलसीदास तक साधुवाद की कसौटी श्रीराम है। कालचक्र के साथ धर्म की जटिल होती गई परिभाषाओं को श्रीराम के बिना समझना दुरुह है। भारतीयता के नाम पर यह देश पीढ़ियों से चरित्र के जिन मूल्यों को सामने रखते आया है, श्रीराम उसके प्रतिनिधि-पुरुष है। हिंदू संस्कृति और उसके मूल सनातन धर्म की पहली पुरी अयोध्या अपनी संस्कृति पहचान में पुनप्रतिष्ठित हो रही है। यह उन महाराज मनु की राजधानी है, जिसके संबंध में मानव-जाति की पहचान है। यह उन मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की जन्म भूमि है जिसकी जीवनयात्रा निर्वासन से प्ररंभ होकर निषाद, किरात, कोल-भील वनवासी, गिरिवासी तथा ऋषि-मुनियों से होते हुए वरन-भालूओं तक पहुंचती है और उनमें स्नेहा संचार करती है और अंततः रामराज्य का आकार लेती है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने आगे कहा कि श्रीराम का चरित्र सद्भाव और सौमनस्य की उसे संस्कृति को व्यक्ति की चेतना में जागृत करता है, जो भारतीयता का प्राण तत्व है। यह एक नगर या तीर्थ भर का विकास नहीं है, यह उसे विश्वास की विजय है, जिसे ‘सत्यमेव जयते’के रूप में भारत के राजचिह्र में अंगीकार किया गया है। लोक की बहुआयामी चेतन को एकात्म करने, सदियों की निष्ठा को सम्मान देने और इन सब के माध्यम से एक संप्रभु राष्ट्र की लोकोन्मुख प्रतिज्ञा को पूरा करने का यह अप्रतिम उदाहरण है। यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आध्यात्मिक अनुष्का है। जिसे राष्ट्रीय गौरव के रूप में देखा जाना चाहिए। शताब्दियों से आस्था कि केंद्र अयोध्यापुरी का पुनरूत्थान श्रीराम के उस मनुष्य भाव का सत्कार है, जिसकी शिक्षा देने के लिए उनका अवतार हुआ।

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