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आदिवासी समाज गुलाम है : सालखन मुर्मू

जमशेदपुर। आदिवासी संताल समाज भी गुलाम है, राजतांत्रिक माझी -परगना व्यवस्था की जंजीरों में कैद है। जबकि भारत देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया और 26 जनवरी 1950 को संवैधानिक गणतंत्र को अपना लिया है। राजतांत्रिक गुलामी के कारण संताल बहुल झारखंड प्रदेश में भी संताल गांव- समाज लाचार, कमजोर, मजबूर है। राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सर्वाधिक बड़ी आदिवासी भाषा- संताली भाषा को झारखंड की राजभाषा बनाने का आवाज बुलंद नहीं कर पाता है। आदिवासी संताल गांव- समाज में वोट और राजनीति की बात करना वर्जित है। वोट को हंडिया, दारु, चखना, रुपयों में खरीद- बिक्री की परंपरा है। इस राजतांत्रिक गुलामी का फायदा उठाकर एक संताल परिवार राजनीतिक सत्ता- सुख का पूरा मौज उठा रहा है। बाकी सभी गुलाम/ कैदी की तरह चुप हैं।

आदिवासी सेंगेल अभियान, 5 प्रदेशों के लगभग 50 जिलों में आदिवासी गांव- समाज में जनतांत्रिक आजादी के लिए प्रयत्नशील है। आदिवासी संताल समाज के माझी- परगाना स्वशासन व्यवस्था में गुणात्मक जनतंत्रीकरण के बगैर गुलामी से आजादी नामुमकिन है।

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